सबगुरु न्यूज। परमात्मा का आधार मात्र भावनाएं ही होतीं हैं जो ज्ञान, कर्म, भक्ति में भी नहीं मिलतीं क्योंकि भावनाएं इस शरीर से प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं रखती। इनका सम्बन्ध केवल उस मन से होता है जो शरीर में रहने के बाद भी नहीं दिखाई देता है और पूरे शरीर को अपने अधीन रखता है। ज्ञान, भक्ति और कर्म सब उस की ही मेहरबानियों के नतीजे है अन्यथा भोगी कभी योगी नहीं बनता और योगी कभी भोग के मार्गों का अनुसरण नहीं करता।
सदियों से आज तक संत व महापुरुष इस मन को ही उपदेश देते हैं ना कि आत्मा व शरीर को। आत्मा तो खुद एक जाग्रत शक्ति है जो हर नीति व विद्वानों से परे है और शरीर उपस्थित रहने का प्रमाण है। आत्मा के जागरण व शरीर की शक्ति का भोग केवल मन ही करता है और मन भी भावनाओं के वश में रहता है।
ज्ञान, भक्ति और कर्म के अखाडे में शरीर और आत्मा के साथ मन खड़ा होकर भी भावनाओं मे खोया रहता है। भक्ति के अखाडे में श्री राम ने साथ खड़े हनुमान भावनाओं के कारण ही उनके भक्त बन गए और वही कर्म के अखाडे में खडा रावण उनका प्रबल शत्रु बन गया।
गीता का परम ज्ञान सुनने के बाद भी अर्जुन कर्म से पीछे हट गया ओर फिर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को द्रोपदी के अपमान की याद दिलाकर भावनाओं मे बहा दिया और महाभारत की जंग हुई। वही सर्वज्ञ कृष्ण के साथ रह कर भी उनका अपना परिवार भावनाओं से ही उनके सामने ही मिट गया।
संत जन कहते हैं कि हे मानव केवल अपने नाम के लिए दो रूपए का दान दे दिया या दिल बहलाने के लिए नाचा कूदी कर ली अथवा स्वयं की संगठित भीड में अपनी महिमा की तालियां बजवा ली, इन सबमें मन केवल लोभ की भावना के लिबास को ओढ़े बैठा है और ये मार्ग विजय की ओर नहीं ले जाते।
विजय के मार्ग की ओर जाने के लिए जब असंठित भीड जब आपके हाथ में कल्याण के लिए झंडे देगी तब ही आप विजय के मार्ग पर बढ पाओगे अन्यथा ये लोभी भावनाएं शरीर व आत्मा के नाम धारी को बदनाम कर अफसोस करने के लिए बैठा देंगी और मन भी तुम्हें देखकर जहरीली हंसी के ठहाके लगाएगा।
इसलिए हे मानव तू गुमराह मत हो और मन की भावनाओं को परमात्मा के शरण में ले जा, निश्चित रूप से दिन के आठ प्रहर और सात दिन के गुणा के छप्पन भोग अर्पण हो जाएंगे।
सौजन्य : भंवरलाल