सबगुरु न्यूज। युद्ध के मैदान में तैयार खडी शतरंज की गोटियां मौन थी तथा अपने प्रतिद्वन्दी की चाल को शह और मात देने के लिए चाल को ढूंढ रही थी। दोनों राजा अपनी अपनी सेना के वीरों को देख कर उनकी शक्ति के अनुसार अपनी योजना का नकशा ले आक्रमण की चाल को ढूंढ रहे थे। ये तीर तलवारों का युद्ध ना था और ना ही अपने बाहुबल का। यह वह युद्ध था जिसमें दिमागी कसरत की परीक्षा थी।
चाल शुरू हुई और प्रतिद्वंदी बड़े सजग हुए तथा चाल के जवाब में चालें चलती गई। घोड़े, ऊंट, सैनिकों के साथ घर्षण युद्ध में लग गए। हाथियों के बल व सैनिकों की ढाल से राजा को एक बार सुरक्षित किया और वजीर दोनों ही बाहर निकल कर योजनावद्ध तरीके से युद्ध का संचालन करने लगे। घोड़े की चाल से वजीर घबराए और खुद को बचाने के लिए पीछे हटे।
दूसरी ही चाल में घोड़े ने राजा और वजीर पर शह लगा दी। बादशाह बच गया और वजीर मारा गया। एक सेना का मनोबल बढ गया, वह प्रतिद्वंदी को हराने में लग गई और अपनी अगली चाल को तलाशने लगी कि किस तरह इस खेल को जीता जाए।
शकुनि के पासे की चाल और कृष्ण की रणनीति निर्णायक बनी। दोनों को भी चाल व रणनीति की कीमत चुकानी पड़ी तथा रणनीति ने युद्ध जीत लिया। चाल और रणनीति वीरता पर आधारित नहीं होती वह तो शंतरज के कायदो को छोड़ हर हथकंडे इस्तेमाल करने पर उतारू होती है और जिसका हथकंडा भारी होता है वह विजेता बन जाता है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव जीवन के शतरंज में प्रतिद्वंदी बनीं हर समस्या को कायदे कानून से जब व्यक्ति जीत नहीं पाता है तो वह हताश और निराश होकर हार जाता है। दुनिया उसे बदनामी का बादशाह घोषित कर देती है।
शंतरज के खानों से बाहर निकल कर जब व्यक्ति झूठ, फरेब, कपट का सहारा लेकर कलयुगी रणनीति को अपनाता है तो वह विजेता घोषित किया जाता है। दुनिया उसे सम्मान के आभूषणों से लाद देती है पर हर चमके आभूषण की चमक उसे कोसती रहती है और मन ही मन सत्य के दर्द को समझ जाता है।
इसलिए हे मानव तू केवल जीवन के मूल्यों के रण में ही युद्ध कर तेरी हार भी प्रतिद्वंदियों के लिए श्राप बन कर उनका पतन कर देगी।
सौजन्य : भंवरलाल