सबगुरु न्यूज। कुदरत ने अंतिम विकल्प के रूप में किसी को भी उत्पन्न नहीं किया और ना ही एक व्यक्ति को ही सर्व गुण संपन्न रखा। हर व्यक्ति वस्तु स्थान को कई गुणों से भरा तो उसमें उन कमियों को भी छोड़ दिया जो सदा बिना जवाब के सवाल बन कर ही रह गए।
हर व्यक्ति अपने गुणों से कार्य करता रहा भले ही स्थितियां उसके अनुकूल रही या नहीं रही। उसकी अदृश्य मनोवृत्तियां ही उन गुणों की ओर ले गई जो उसे जन्म से प्राप्त हुई। इस कारण वह कैसी भी संगत से रह गया कुछ भी शिक्षा प्राप्त कर ली हो। अमीरों के घर पैदा हुआ या गरीब की झोपड़ी में, इससे कोई फर्क नहीं पडा।
इन्हीं गुणों के कारण कोई जन्म से महान् बन गया तो कोई कर्म से और किसी पर झूठी महानता थोप दी गई। कोई बहुत कुछ कर के भी सदा गुमनाम रह गया तो कोई कुछ भी नहीं करके सदा प्रसिद्धियों के मेलों में अपना नाम पूजवाता रहा। कोई राजा नहीं बनकर भी दाता की तरह रहा तो कोई राजा बनकर भी छीनता रहा।
दार्शनिक, विचारक, राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, वैज्ञानिक या किसी भी क्षेत्र के विशेषज्ञ सदियों से आज तक एक से बढ़कर एक आते रहे हैं और कोई भी अंतिम विकल्प के रूप में आज तक के सृष्टि इतिहास में नहीं रहा।
किसी को उपलब्धियों के कारण तो किसी को बर्बादियों के रूप में सदा से आज तक याद रखा जाता है और इस समूचे इतिहास को कालचक्र मूक गवाह बन कर स्मृतियों में ले जाता है और हर बार नई शक्तियों का उदय करता हुआ आवागमन का मार्ग जारी रखता है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव इस जगत में कमेडी, बगुले और कौए तो बडी संख्या में पैदा होते हैं लेकिन हंस कम ही पैदा होते हैं। हंस अपनी चाल से सबको लुभा कर उडता है और बगुला की चाल धूर्त व स्वार्थी की तरह अपने शिकार के लिए ही होती।
इसलिए हे मानव शरीर में बैठी धड़कने वाली आत्मा हंस की चाल बनकर शरीर के हर अंग को जिन्दा रखती हैं और मन बगुले की चाल चलकर लोभ, लालच और स्वार्थ में फंस जाता है और पूरे शरीर के नामधारी को परेशानी में डाल कर देता है।
इसलिए संत बगुले को समझाते हैं कि तू अपनी चाल छोड़कर हंस की चाल सीख और दुनिया तथा अपने आप को सदा सुखी रख। सदा हंस ही याद किए जाएंगे बगुले नहीं।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर