सबगुरु न्यूज। चारों दिशाएं उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम तथा चार विदिशाएं अग्नि कोण, नैऋत्य कोण, वायवय कोण तथा ईशान कोण व दो आकाश एवं पाताल ये दस दिशाएं जब अपने गुणों के प्रभाव से वंचित होने लग जाती है तो इन सभी दिशाओं का नकारात्मक बल केन्द्रीय बल को भटका देता है।
दिशा विहीन केन्द्रिय बल अव्यवस्थित होकर सभी ऊर्जा स्त्रोतों की दशा को धराशायी कर देता है और उस स्थान की दिशाएं और दशाएं भटक जाती हैं।
दिशाएं और दशाएं भटकने से हर क्षेत्र में त्राहि त्राहि मचाने लग जाती है और सारा माहौल दूषित होने लग जाता है। मूल उद्देश्य और दायित्व तथा उनकी सफलताएं अपनी जीवित षोडशी मना कर बरी हो जाती हैं और अपनी काल के पूरे होने की मृत्यु के पहले दान पुण्य की घोषणा कर पुनर्जन्म के लिए सर्वत्र अपना स्थान ढूंढने लग जाती हैं।
संत जन कहते हैं कि हे मानव दिशाओं की दशा जब बिगड जाती है तो केशर की खेती में फिर कैक्टस की फसल ही उगती है और मक्का बाजरे की भूमि में चावल की फसल जलने लग जाती है। दलहन ओर तिलहन की भूमि गन्नों को नहीं ऊपजने देती है। भूमि की किस्म और बीजों के बेमैल होने से सारी फसल चोपट हो जाती है।
इसलिए हे मानव यदि कोई अपने मूल उद्देश्य और उसकी पूर्ति के दायित्वों का निर्वहन भली भांति नहीं करता है तो उसकी हर दिशाओं में असफलता का ही परचम लहराएगा। यहीं असफलता दशा को भटकाकर उसे अस्तित्व हीन बना देगी। मूल उद्देश्य से भटककर अनावश्यक उदेश्यों के अनावश्यक संघर्ष ही सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा धार्मिक सभी क्षेत्रों की दशा को चौपट कर देंगे।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर