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hindu mythology stories-खंडहरों की दुनिया में बैबस प्यास - Sabguru News
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खंडहरों की दुनिया में बैबस प्यास

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खंडहरों की दुनिया में बैबस प्यास

सबगुरु न्यूज। अपनी संस्कृति को खंडहरों की दुनिया में बदलते, बढ़ती अनैतिकता, बैबस प्यास के कारण संतुलन बनाने के लिए प्रकृति चिखते और चिल्लाते हुए दुनिया को संकेत देती है कि हे मानव अब संभल जा, मेरे गुण धर्म के अनुसार व्यवहार कर अन्यथा तू सदा के लिए मेरी मिट्टी में मिल जाएगा।

भले ही हम आत्मा और पूर्व जन्म को न माने, साकार और निराकार उस परमात्मा को ना माने, मान्यता, विश्वास व आध्यात्म तथा धर्म को ना माने लेकिन हमें जन्म देने वाले और उनको भी जन्म देने वाले को मानना ही पडता है। भले ही अपनी भूमिका के अनुसार अपनी भूमिका अदा न कर पाएं।

हमारे घर या दिल में बसे ये रिश्ते मृत नहीं होते, भले ही वे इस दुनिया में नहीं हों। विश्व समाज के ये मृत लोग जब झांककर उनके द्वारा बनाईं अभौतिक संस्कृति तथा भौतिक संस्कृति के महलों को देखते हैं, उन्हें सब खंडहर की दुनिया ही नजर आती है। उनकीं वर्तमान पीढ़ी बैबस होकर उस प्यास की ओर दौड़े जा रही जैसे मरूभूमि में उठे भारी मिट्टी के बंबडर में जाकर मिलना है।

अपने स्वार्थो को हासिल करने के लिए झूठ, कपट और धोखे का जामा पहनकर बिना कर्म के कर्म योगी की उपाधि धारण कर बैबस बैसहारा और यहां तक कि अपने खून के रिश्तों को भी ये सडकों पर ला देते हैं तथा हाय धन—हाय धन कर चन्द कागज के टुकड़ों पर उनको निलाम करा देते हैं।

विश्व समाज के ये मृत व्यक्ति भले ही श्राद्ध पक्ष में अपने कुनबे के यहां भोजन करने नहीं पधारें लेकिन उनकी तस्वीरों को गंभीरता से देखा जाए तो उनकी आंखों से घृणा निकलती है। मानों वे कह रहे हों कि हे मानव तूने ये क्या कर डाला। प्रकृति की इस विरासत को खंडहर क्यों बना डाला। अपने जीवन के लिए लोभ-लालच के कुएं में घुसकर भी बैबस और प्यासा हो गया।

मेरे लिए श्रद्धा का श्राद्ध भले ही मत रख, लेकिन तेरा नाम लेने वाला भी कोई नहीं होगा।
संत जन कहते हैं कि हे प्राणी तू अपने स्वार्थो के कारण भौतिक व अभौतिक संस्कृति को खत्म मत कर, किसी भी अंधविश्वास में भले मत पड लेकिन तो मानव को मानवता से रहने देने का विश्वास दिला। ये खंडर फिर बस जाएंगे, तेरी बैबस प्यास रूक जाएगी।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर