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नसीब का लेखा कुदरत के हवाले

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नसीब का लेखा कुदरत के हवाले

सबगुरु न्यूज। कर्म भाग्य को नहीं बदल सकता है। कर्म केवल भाग्य बदलने का कुशल प्रबंध कर सकता है। खूबसूरत ढंग से उसका प्रस्तुतीकरण कर सकता है, बढाचढा कर उसका विश्लेषण उन्नत ढंग से कर सकता है। विस्तृत स्तर पर उसे प्रसारित और प्रचारित कर अपने वजूद को तार्किक होने का प्रमाण पत्र दे सकता है। यह सब कुछ सत्य हो या चाहे गलत हो पर कर्म नसीब को नहीं बदल सकता है।

कर्म एक ऐसी आधारशिला है जो अपनी योजना को फलीभूत तो कर लेता है पर उस कर्म का अंतिम परिणाम नसीब अपने हाथ में ही रखता है। कर्म का क्षेत्र भले सामाजिक हो, आर्थिक हो, राजनीतिक हो, वैज्ञानिक हो, धार्मिक हो या जीवन का कोई भी क्षेत्र क्यों ना हो उनकी अंतिम सफलता को हासिल कर सकना कर्म के बस में नहीं होता। इसलिए श्रीकृष्ण गीता में यही कहते हैं कि हे मानव कर्म कर और फल की चिंता मत कर।

महाभारत के महायुद्ध में कर्म ने बल, छल, कपट से अपना खूबसूरत खेल खेला फिर भी अंतिम विजेता कर्म नहीं था और ना ही वीरता और छल कपट। अंतिम विजेता श्रीकृष्ण का चमत्कार था और उनके चमत्कार ने एक पक्ष के कर्म को नसीब में बदल डाला। जयद्रथ का वध, अस्त सूर्य ने फिर उदय होकर करवा डाला और यह कर्म का नहीं नसीब का ही खेल था जिसमें कृष्ण की कला ही छिपी हुई थी, इसी कला में बर्बरीक का सिर कटा।

विज्ञान कर्म का बेताज बादशाह होने के बावजूद भी आज तक कुदरत के कहर को अपने बस में नहीं कर पाया और कुदरत ने कर्म के नसीब को बदल डाला। कर्म का अंतिम लेखा कुदरत के हाथ में ही होता है। काल बल की प्रधानता कमजोर को शक्तिशाली व शक्तिशाली को कमजोर बना देती है। स्थान बल की प्रधानता रख पत्थर को भी पूजवा देती है और कर्म भी को मन्नतों के धागे बंधवा देती है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव कोई आस्तिक हो या नास्तिक वह अंतिम सत्ता कुदरत की ही मानता है। चाहे खुले आम और चाहे बंद कमरे में। बस यही पर कर्म अपने सारे अस्त्र शस्त्र लेकर बैठ जाता है और तूफानों के खेल में पंतगबाजी नहीं करता। कुदरत को ठेंगा दिखाने वाले का सदा ही जर्जर अंत हुआ है। कुदरत के अखाडे में कर्म के सौदे नहीं होते।

इसलिए हे मानव तू कर्म कर और कुदरत को धोखा देने की बात दिल से निकाल दे। कुदरत भिखारी का भी पेट अपनी जगह बैठे बैठे भर देती है और राजा को दर दर भटकाने के बाद भी भूखा रख देती है। अंत में कुदरत ही दोनों को अपने ठिकाने ले जाती है और कर्म तथा नसीब के खेल को यादगार बना कर छोड़ जाती है।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर