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कश्तियां अब भंवर में नहीं, किनारों पर डूबेंगी
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कश्तियां अब भंवर में नहीं, किनारों पर डूबेंगी

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कश्तियां अब भंवर में नहीं, किनारों पर डूबेंगी

सबगुरु न्यूज। समुद्र के पानी को बार-बार हांकते जंगली तूफान और चूभन देती हुई तेज गति से चलती बेदर्द हवाएं कश्तियों को अब भंवर में नहीं किनारों पर ही डूबो देंगी। कारण बस यही होगा कि ये जंगली तूफान ओर चुभती हवाएं कश्तियों को समुद्र के बीच जाने नहीं देगी और ना ही कश्तियों मे बैठा मुसाफिर अपनी यात्रा के अगले पड़ाव पर पहुंच पाएगा।

किनारों को तोडते तूफानों के थपेडे और हवाओं से आती हुई समुद्र की गंदगी ही किनारों को दल-दल बना देती हैं और कश्तियों को उस दल दल में फंसाकर आगे नहीं बढने देतीं और कश्तियों के मुसाफिर व कश्तियां दल-दल में ही डूब जाते हैं। समुद्र के खाली पड़े टापू भी कश्तियों की दुर्दशा पर मुस्कुराते हुए कहते हैं, ऐ मुसाफिर मुझ पर आना हर बार इतना आसान नहीं है।

जमीनी हकीकत भी यही होती है कि हर बार सफलता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को अपने स्थान मजबूत रखने पडते हैं और उन जमी गंदगी को तुरंत हटानी पड़ती हैं, नहीं तो गंदगी, हवाओं से अपने ही स्थान को गंदा कर देती हैं और मजबूत स्थान भी गंदगी के ठेर से सन जाते हैं और उनमे दुर्गंध सी आने लग जाती हैं। लोग उसे गंदा घर कह कह कर बारी बारी से उस स्थान को छोड़ दूसरे स्थान पर जमा हो जाते हैं।

जब तक किनारे मजबूत नहीं होंगे तथा गंदगी के दलदल जमे रहेंगे तो उसमें खडी कश्तियों अपने सफर को शुरू करते ही दल-दल से संघर्ष करने लग जाएंगी ओर अपनी मंजिलें तय नहीं कर पाएंगी। उस यात्रा में साथ लगे मुसाफिर को जब मालूम पडेगा कि यह मजबूत दिखने वालीं किशति मझधार में ही डूब जाएंगी और मुझे जिन्दा रखो, मुझे जिन्दा रखों के शोर मचाने लग जाएंगीं तब हर मुश्किल देख, हर मुसाफिर उस कश्तियों से किनारा कर उसे वहीं छोड़ जाएगा। तथा आने वाले तूफान, उस किशति को किनारे पर ही डुबो देंगे और मांझी खूब चीखता चिल्लाता ही रह जाएंगा।

संत जन कहते हैं कि हे मानव कि सफलता के सफर इतने आसान नहीं होते कि उसे बदलते युग में आसानी से हासिल कर लो और हर बार अपनी जीत के डंके गाढ़ लो। हर क़दम पर अब अपने कर्म को कसोटी पर कसवाने पडते हैं और उन कसौटियो पर शुद्ध सोना ही खरा उतरता है पीतल नहीं।

इसलिए हे मानव पीतल पर चढ़ाई सोने की पॉलिश आखिर उतर जाती है और लोग सोने की जगह उस लोहे पर ही विश्वास करनें लग जाते हैं कि भले ही लोहा जंग खा सकता है लेकिन उसकी किस्म नहीं बदल सकतीं।

इसलिए आने वाले तूफानों में कश्तियां भंवर तक पहुंच ही नहीं पाएंगी और अपने दल-दल में ही डूब जाएंगी। इसलिए हे मानव तू दूसरों के घरों मे जमी गंदगी का बखान मत कर और अपने घर गंदगी से साफ़ कर, नहीं तो आने वाले तूफान तेरे घर में गंदगी के ढेर लगा, तूझे तेरी अस्तित्व का भान करा देंगे और तुझे किनारों पर ही डूबो देंगे।

सौजन्य : भंवरलाल