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सफेद घोड़े पर लिपटे काले नाग
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सफेद घोड़े पर लिपटे काले नाग

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सफेद घोड़े पर लिपटे काले नाग

सबगुरु न्यूज। वास्तव में वह घोड़ा सफेद रंग का था लेकिन काले नाग बड़ी सघनता से उसके ऊपर लिपट गए ओर देखते ही देखते सफेद रंग का घोडा काले रंग का दिखने लगा। इस खेल में सफेद घोड़े और काले नागों का तो कुछ भी नहीं बिगडा क्योंकि उनका स्वतंत्र अस्तित्व था लेकिन हालतों की मंडी मे सफेद घोड़ा हार गया और काले रंग का घोडा जीत गया।

बस, कहानी कि शुरुआत यही से ही होती हैं। हारा हुआ सफेद रंग का घोडा सोच में पड गया कि मैं तो सफेद रंग का ही था, मुझे सफेद कहने वाला हार गया तथा जिसनें साज़िश रचकर मेरे रंग को काले नागों से ढंककर काला साबित कर दिया। मुझे काला घोषित करवाकर वह जीत गया जबकि मैं काले रंग का नहीं था।

एक ऋषि की दो पत्नियों के बीच सूर्य के घोडे को देखकर इस बात पर शर्त लग गई कि इसका रंग कौनसा है। घोडा सफेद रंग का था तो एक स्त्री जो नागों की माता थी उसने कहा हममें से जो भी हार जाएगा वह ग़ुलाम बन जाएगा। दोनों शर्त पर तैयार हो गईं। तब नागों की माता बोली यह घोड़ा काले रंग का है तब दूसरी स्त्री ने कहा ये सफेद रंग का है। दोनों में विवाद छिड़ गया ओर उन्होंने कहा हम दोनों वहां चलकर घोडे को देख कर ही फैसला करेंगे।

इसी बीच नागों की माता ने नागों को आदेश दिया कि तुम सब घोड़े के लिपट जाओ और इसका कोई भी अंग सफेद दिख ना पाएं। नागों ने ऐसे हीं किया ओर घोड़े के लिपट गए। घोड़ा जो सफेद रंग का था वह काला दिखाईं देने लगा। दोनों स्त्रियो ने देखा तों घोड़ा काला दिखाईं दे रहा था। इस खेल में नागों की माता जीत गई। यह अति पौराणिक कथा है।

ये अति प्राचीन कथा इस बात का संकेत देती हैं कि व्यक्ति का जब स्वार्थ बढ जाता है तो वह येन केन प्रकारेण अपने स्वार्थो को साधने के लिए कुछ भी कर सकता है। नकारात्मक विचार रख अपनी झूठी विजय व मान सम्मान को बनाए रखने के लिए व्यक्ति सच को झूठ में और झूठ को सच मे बदल सकता है। बाहुबली होने पर तो ये मार्ग बडे आसान हो जाते हैं।

अभौतिक संस्कृति के आभूषण सत्य, धर्म, कर्म, मूल्य, विश्वास, मान्यताएं, नियम, कानून कायदे, आचार विचार, व्यवहार यह सभी मौन होकर खडे रह जाते हैं और विधाता की ओर देखने लग जाते हैं और हार जाते है।

कलयुग खड़ा हंसता हुआ कहता है कि ये प्राणी मेरे काल का यही नियम है। जो मेरे गुण धर्म को अपना लेगा वह सुखी और समृद्ध रहेगा, क्योंकि मैं भौतिक संस्कृति का जनक हूं और मेरा भगवान मेरा लोभ लालच है। मै इसे बनाए रखने के लिए कुछ भी कर सकता हूं। मैं अभौतिक संस्कृति का चोला पहनकर सहानुभूति बटोरता हूं तथा भौतिक बन उनका भोग करता हू उसके लिए मेरे ही कलयुगी कानून काम आते हैं।

संत जन कहते हैं कि हे मानव कलयुग में जो भी हो रहा है उसे जाने दे और अपने लक्ष्य की ओर बढ। हारने पर भी तू विजय की ओर अग्रसर होगा और एक दिन तेरी साधना सफल होगी क्योंकि कलयुग भी अमर नहीं रहने वाला है। ये सिर चढकर बोलता शनि एक दिन इसे जंगल की ओर छोड़ जाएगा। इसलिए हे मानव तू सत्य के मार्ग पर ही बढ तेरा जीवन सुधर जाएगा ओर असत्य जानवरों से कुचला जाएगा।

सौजन्य : भंवरलाल