सबगुरु न्यूज। जिन विचित्रता से यह दुनिया भरी है उसकी थाह पाना इतना आसान नहीं। हम बानगी देख कर किसी भी नतीजे पर पहुंचा जाना सहज नहीं रहा। इसकी सत्यता क्या है। सोच, विचारधारा और दर्शन उन किताबों की विषय वस्तु ही बन कर रह जाती है।
मानव के जन्म के साथ जन्मी उन चौदह मनोवृत्तिया में से केवल ईर्ष्या, जलन व लोभ ही सदियों से आज तक भारी पडती आ रही है और इन तीनों गुण से सना हुआ व्यक्ति उस नए धर्म की स्थापना करता है।
धर्म, उपदेश येनकेन प्रकारेण अपने को मजबूत बनाने के लिए लालायित रहने और हर हथकंडे अपना कर अपना एक भारी समूह बना धोखे की धडकनों से अपने विचारों को अपने ही समूह से पंसद करा सबसे ज्यादा पंसद किया जाने वाला घोषित कराता है और सत्य के पंसद करने वालों को लोप कर देता है।
वास्तविकता और सत्य को डुबोकर यह बनाया गया नया दर्शन उस सोने के सिक्के की तरह होता है जो गंदगी के ढेर में पडा होता है और उसे निकाल कर साफ कर लिया जाता है तथा गंदगी को सर्वत्र फैला दिया जाता है। वह सोने का सिक्का चलन का आधार बन जाता है। सोने के सिक्के में आत्मा नहीं होती इस कारण वह बाजार के हर असली धातुओं के सिक्कों को चलन से बाहर निकाल देता है तथा आधारहीन सिक्कों को चलन में लाकर सबको आधार हीन बना देता है।
सोने के सिक्के आत्माहीन बनकर जब प्रचलन में आते हैं तो वे ठहाका मारकर अपनी शुद्धता की दुहाई देता है और दुनिया के बाजारों में अपने सिक्के को चलाने का दांव खेलते हैं लेकिन तब तक दुनिया के बाजारों का आधार हीरा बन जाता है और सोने का सिक्का औंधे मुंह गिरकर वापस गंदगी में गिर जाता है, बाजार में शून्यता आ जाती है। पहचानी हर धातु पहचानी नहीं जातीं क्योंकि नए दर्शन व धर्म पहले से ही उसे चलन से बाहर कर देता है।
प्रेम, मोहब्बत और हम की भावना रखने वाले दीवाने दुनिया में सदा ही पाए जाते हैं क्योंकि इन्हें बहुत त्याग के बाद पाया जाता है। इसलिए ये लोग पहचानने के बाद भी नहीं पहचाने जाते। केवल स्वार्थ ही इनसे साधा जाता है तथा इनके कंधे का सहारा लेकर चढ़ा जाता है। जाते जाते उन कंधों को तोड़ जाते हैं और टूटा कंधा तो शनैः शनैः जुड़ जाता है पर सहारा लेकर छंलाग लगाने वाले गिर जाते हैं।
संत जन कहते हैं कि हे मानव स्वार्थी लोग अपना स्वार्थ येन केन प्रकारेण हथियाने के लिए आपको हर तरीके से अपना बना लेंगे और बाद में आपकी सूरत को पहचानने से भी इंकार कर देंगे। आवश्यकता पड़ने पर आप पर हर इलजाम लगा कर गुनाहगार साबित करा देंगे, क्योंकि वो छल कपट झूठ फरेब लालच और अहंकार के आवरण पहन बलवान हो जाते हैं तथा सत्य इनके सामने हताश व निराश होकर बदनाम हो जाता है।
इसलिए हे मानव जब मोहब्बत हद से बढती है तो पहचानी सूरत भी पहचानी नहीं जाती और छल, कपट, झूठ, फरेब, लालच और अंहकार के आवरण पहनकर बलवान बना व्यक्ति भी पहचानने के बाद भी पहचाना नहीं जाता। इसलिए हे मानव भले ही तुझे सत्य के मार्ग पर चलने वाले चंद लोग ही पंसद करें, पर वो लाख गुणा श्रेष्ठ है। असत्य की भीड़ में तू अकेला मत खड़ा रह।
सौजन्य : भंवरलाल