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बसंत ऋतु : नवशक्ति व नव प्रबन्धन का उदय काल

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बसंत ऋतु : नवशक्ति व नव प्रबन्धन का उदय काल

सबगुरु न्यूज। नकारात्मक प्रबन्धन का सकारात्मक प्रदर्शन करती हुई ऋतुएं जब अपनी हद से ज्यादा आगे बढ़ती हैं तो प्रकृति की शासन व्यवस्था को बिगाड़ने लगती हैं। मौसम के गुण धर्म बदल कर कई मौसमी बीमारियों को बढाकर अपना तांडव दिखाना शुरू करती हैं। प्रकृति इस अनावश्यक खेल का अंत करने के लिए नई ऋतु को स्थापित करती है और नकारात्मक प्रबन्धन व बिगडी हुई व्यवस्था को उखाड़ देती है।

ऋतु चाहे कोई सी भी क्यो न हो, सभी ऋतुओं का लगभग ऐसा ही अंत हो जाता है। वह आती हैं तो बडी अच्छी और सुहानी दिखाई देती है पर जब जाने का समय आ जाता है तो मानों ऐसा लगता है कि ये जाना ही नहीं चाहती और अपने मौसमी हथकंडे अपना कर अंगद के पांव की तरह जमे ही रहना चाहती हैं।

ऋतुओं के यह हाल देखकर प्रकृति भी मौन धारण कर लेती हैं और उस मौन में यही संदेश होते हैं कि ऋतुएं परिवर्तन प्रकृति का नियम है और कोई भी ऋतु अच्छा बनाने में खुद को पीछे नहीं रखती और बिगाड़ने में भी कोई कम नहीं रहती। इसलिए तुम आती जाती रहोगी तो ही ठीक रहेगा। हे शिशिर तेरी अति देख तू बसंत आने के बाद भी अनावश्यक ही ठंड के झटके पर झटके दिए जा रही है और बंसत को ठंड पिला रही है।

तुम्हारे खेल से मेरे रचना में रहने वाले सभी सजीव और निर्जीव बेहाल हुए जा रहे हैं। तेरी सोच के इस नकारात्मक प्रबन्धन से तेरा सकारात्मक प्रदर्शन मेल नहीं खाता। अब जरूरत पड गई है व्यवस्था में अनुकूल संतुलन बनाने की इसलिए मैं नव शक्ति के रूप बंसत को स्थापित करती हूं जिससे यह नव शक्ति सकारात्मक प्रबन्धन के सकारात्मक प्रदर्शन करेंगी और नकारात्मकता जमीनी स्तर पर खत्म हो जाएगी।

बसंत ऋतु प्रचंड मेष राशि के सूर्य की उर्जा के साथ शिशिर ऋतु द्वारा उत्पन्न ठंड के संकटों को चिरती हुई सबको धराशायी करते हुए तथा शिशिर का परचम लहराने वाली हवाओं को जमीन दिखाकर गर्म जोशी की हवा से सजीव और निर्जीव सभी में नव ऊर्जा का संचार करती है और नव शक्ति बनकर बसंतीय नवरात्रा के रूप मे स्थापित होती है। ये नव प्रबन्धन को दिशा देती हैं। बसंत की यही नव ऊर्जा आने वाली हर ऋतुओं के लिए आधार शिला बन जाती है।

संत जन कहते हैं कि मानव, ऋतुओं की बदलती स्थितियां एक नए प्रबन्धन की ओर ले जाती है और वो अपने ही रंगों में ढालती हुई जीव व जगत को प्रभावित करने लगती हैं तथा अपनी ही प्रधानता रखती हैं। जीव व जगत इस व्यवस्था से जब कुछ ज्यादा ही परेशान हो जाता है तब नया ऋतु चक्र अपनी दस्तक देता है और शनै: शनै: पुरानी ऋतु को बदल देता है। बदला हुआ ऋतु चक्र अपना शासन जमाता हुआ नव शक्ति का उदय कर जीव व जगत को राहत देता है।

इसलिए हे मानव, यदि ऋतु चक्र नहीं बदलता तो सम्पूर्ण व्यवस्था में एक ही गुण धर्म रह जाएंगे और प्रबन्धन सबको अनुकूलता फल नहीं दे पाएगा और यही प्रबन्धन पीड़ितों के लिए फिर नकारात्मक प्रबन्धन बन जाएगा और उसका सकारात्मक प्रदर्शन हितकारी साबित नहीं होता है। इसलिए हे मानव, अपने शरीर व रहन सहन और खान पान के तौर तरीकों को ऋतु चक्र अनुसार बदल तथा सकारात्मक प्रबन्धन से सकारात्मक प्रदर्शन कर और शरीर की शासन व्यवस्था को ऋतुओं के अनुसार ढाल।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर