सबगुरु न्यूज। अपनी धुरी पर भ्रमण करता सूर्य आकाश की बारह राशियां मेष से मीन तक यात्रा करते हुए पुनः मेष राशि में आ जाता है और बिना रुके उसकी यात्रा जारी रहती है। वर्तमान में सूर्य मीन राशि में भ्रमण कर अपनी यात्रा के अंतिम की ओर बढ रहे हैं तथा 14 अप्रेल 2019 से सूर्य नव यात्रा को प्रांरभ करने जा रहे हैं।
भारतीय निरयन मत में सूर्य मीन राशि ओर मेष राशि में भ्रमण करता हुआ बसंत ऋतु को प्रकट करता है। पाश्चात्य सायन मत के अनुसार सूर्य मेष राशि में चलता हुआ बंसत को यौवन पर गर्म किए जाता है। मेष राशि का सूर्य अपनी उच्चस्थ स्थिति में होता है और यह राशि ज्योतिष शास्त्र में अग्नि तत्व प्रधान व मंगल ग्रह के स्वामित्व वाली मानी जाती है।
बंसत ऋतु जो सुहानी मानी जाती है वह अपने प्रचंड यौवन में आकर शिशिर को जड से उखाड़ अपनी जडों को जमा रही है और इसी श्रम में सूरज की तेजी को झेलती हुई पसीने बहा रही है। यात्राएं अब बंसत का आनंद नहीं ले पा रही है और सूर्य जैसे तैसे इन यात्राओं की पूर्णाहुति कर रहा है और इन का हिसाब पूरा करने में लगा है ताकि अपनी अगली यात्रा की योजना बनाकर वो नए बजट का आगाज़ कर दे।
माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को बंसत ऋतु अपने बाल्यकाल में होती है और फाल्गुन में चंग की थाप तथा होली जलने के साथ वह अपने यौवन में प्रवेश कर जाती है। चैत्र मास के सत्रह दिन निकलने तक जल व फूलों से सजती है, अठारवें दिन गोरी बनकर अपने यौवन की प्रचंडता में पहुंच जाती है और गणगोर की तरह पूजी जाती है।
इसी काल में सूर्य भी अपनी मेष राशि में भ्रमण करता हुआ बंसत को अपने आगोश में ले उसके गुण धर्मों को बदलता हुआ उसे उत्तर गोल में ले जाता है, उसे खूब तपाता है। बसंत का सुहावना संसार फिर सूर्य की तेजी में मिल जाता है और बसंत अपना ग्रीष्म रूप धारण कर लेती है।
संत जन कहते है कि हे मानव, बंसत को अब पसीने आने लग गए है क्योंकि अब उस पर सूर्य की तेजी बरसने लग गई है। ऋतु परिवर्तन के इस बसंत को अब सूरज से बचाने की जरूरत है ताकि यह सूरज बंसत पर अति करके उसे रोगों से पीड़ित ना कर दे और ठंडे व गर्म का यह मिलन बंसत को बीमार ना कर दे।
इसलिए हे मानव, ऋतु परिवर्तन के इस पर्व को अब लापरवाही में मत ले ओर मौसम परिवर्तन के अनुसार ही रहन सहन और खान पान को शनैः शनैः बदल तथा मौसमी बीमारियों से बचा रह।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर