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वो बादल परेशान था, गरजा जैसा बरसा नहीं
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वो बादल परेशान था, गरजा जैसा बरसा नहीं

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वो बादल परेशान था, गरजा जैसा बरसा नहीं

सबगुरु न्यूज। तपते सूरज की गर्मी से जलता समुद्र का पानी भांप बनकर उठता है और बादल का रूप धारण कर एकदम अपना आकार बढ़ाता हुआ आसमान में छा जाता है। बड़ी तेजी के साथ वह माहौल को बदलने के लिए वह सूरज की धूप को ढंककर धीर गंभीर होकर मौका स्थिति को देखता है। इतने में तेज शोर मचा कर हवाएं उसका विरोध करतीं हैं। उधर बादल उतावला होकर बिना अपनी शक्ति का भान करे भारी गरजना करता है, जबकि उसमे पर्याप्त जल राशि नहीं होती है।

उसकी गर्जना ऐसी थी कि वह तुरंत सर्वत्र जल बरसाकर सभी को शांत और सुखद कर देगा। बादल का यह उतावलापन अपनी शक्ति और वहां का माहौल जाने बिना ही बरसना शुरू कर देता है और अपने पीछे आ रहे उन बादलों को दर किनार कर अकेला ही जूझने लग जाता है। उसकी यह सोच एक अभिशाप बन जाती हैं और उसके बरसने का उल्टा असर हो जाता है।

ठंडक के स्थान पर चारों तरफ उमस छा जातीं हैं और सर्वत्र जानलेवा घुटन बन जाती है। त्राहि त्राहि मची देख वह सबको समुद्र के पानी का ध्यान दिलाकर सांत्वना देता है, इतने में समुद्र का जल भांप बनकर बादल बन जाता है और हवाएं उसे दूर, बहुत दूर ले जाकर दूसरे देशों में बरसा कर ठेगा दिखा देती हैं।

उसे दुनिया के बाजार में अपनी शक्ति का बौनापन समझ में आ जाता है फिर भी वह अपनी ईज्जत ढंकने के लिए इधर-उधर भटकता है। जहां के बादलों की दुनिया में उसका कोई अस्तित्व उसे दिखाई नहीं देता है। इसी आपाधापी में मौसम बदलने लग जाता है और दूसरी ऋतुओं का प्रभाव पडने से उमस धीरे-धीरे खत्म होने लगती है। वह बादल इस ऋतु परिवर्तन को भी अपनी देन मानकर सबको सदियों पहले अकाल की तुलना में अपने नुकसान को कम बताता है और सर्वत्र फिर अगले मौसम में जमकर बरसने की घोषणा करता है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव अपनी शक्ति का भान करे बिना जब कोई व्यक्ति अपने किसी शत्रु से जूझता है और खुद को भारी भरकम मानकर उसे हर प्रकार से परास्त करने की नीति व योजना बना लेता है लेकिन वास्तविक बल ना होने के कारण वह अपने छोटे से शत्रु का मुकाबला भी मैदाने जंग में नहीं कर पाता। हर बार चोट लगने पर भी वह दिखावटी हंसी हंसता रहता है और अंदर ही अंदर पीडित रहता है। दर दर भटककर अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए खैरात मांगता फिरता है।

इसलिए हे मानव तू अपनी झूठी इज्जत व साख बचाने के लिए केवल अपने ही लोगों से गुणगान मत करवा, क्योंकि इसी झूठी शौहरत में तेरी शान बिगड़ जाएगी। इसलिए तू अपनी क्षमता के अनुसार अपनी भूमिका और दायित्वों का निर्वहन कर, तू हार कर भी जीत जाएगा।

सौजन्य : भंवरलाल