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सिंहासन के हिलने की आहट - Sabguru News
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सिंहासन के हिलने की आहट

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सिंहासन के हिलने की आहट

सबगुरु न्यूज। जब धरती ओर प्राणियों पर हर तरह के संकट आने लग जाते हैं और वे सब असहनीय हो जाते हैं तथा मानव हर कोशिश के बाद भी उनका सामना नहीं कर पाता है तो माना जाता है कि उसके बाद परमात्मा का सिंहासन हिलने लग जाता है और वे किसी ना किसी रूप में प्रकट होकर उस संकट को टाल देते हैं।

ऐसी धार्मिक मान्यताएं रही है। जमीनी स्तर पर पर ऐसा नहीं पाया जाता है। भौतिक व विज्ञान के युग में परमात्मा नाम के अभौतिक तत्व को नहीं स्वीकारा जाता है और ना ही जन सामान्य के लिए यह सार्वजनिक तोर पर चमत्कार के रूप में इनका अस्तित्व देखा जाता है। फिर भी आस्था विश्वास श्रद्धा के रूप मे यह मान्यताएं विश्व स्तर पर अपना वर्चस्व स्थापित किए हुए है।

हकीकत की दुनिया में जब व्यक्ति को अपने पद, प्रतिष्ठा, अधिकार छिन जाने के स्वर सुनाई देने लग जाते हैं तो उसका मानसिक संतुलन बिगडने लग जाता है और अपना रौद्र रूप धारण कर उन हथकंडो का इस्तेमाल करने लग जाता है जिससे वह अपने आप को श्रेष्ठ व दूसरों को नीचा दिखाने के हर खेल को अंजाम देता है, अपने सिंहासन को पकडे रखता है।

अंधकार में जब दीपक जलाया जाता है तो अंधकार का अहंकार गूंज कर दीपक को ललकाराता है और कहता है कि हे दीपक तेरे में क्षमता नहीं है कि तू मेरे क्षेत्र को अपने ऊजालों से रोशन कर सके और मेरे अस्तित्व को मिटा सके क्योंकि सम्पूर्ण क्षेत्र को मैने उस काले अंधकार से ढंक दिया और सर्वत्र उन तूफानों को चला रखा है जहां तेरा कद बौना ही नजर आएगा, तूझे इन बेरहमी तूफानों से मैं बुझा दूंगा।

तूफानों से टकराते हुए दीपक की रौशनी फिर भी अंधकार के कुछ हिस्सों में ऊजाला कर वहां की हर वस्तु को उजागर कर देती है और कुछ हकीकत का भान दुनिया को कराकर उस अंधकार के सिंहासन को हिला देती है। इतने मे दीपक की उस रौशनी के पीछे मशालें व मोमबत्तीयां भी रोशनी फैलाती हुईं अंधकारमयी वातावरण को रौशन कर अंधकार के सिंहासन को हिला देती है और उसके अस्तित्व को मिटा देतीं हैं, उस चिंगारी की तरह जो देखने में छोटी लगतीं हैं पर आग लगाकर अपने अस्तित्व को प्रकट कर देतीं हैं तथा अंधकार की हर दिशा में ऊजाले कायम कर देती हैं।

संत जन कहते हैं कि ये मानव जब सवार उग्र घोडे पर सवारी करता है तो व​ह घोडे पर अपना पूर्ण नियंत्रण रखता है और रास्तों को भलीभांति देख उस घोड़े को दौडता है। विकट रास्ते और मोड़ पर वह अपना विवेक खोकर घोडे से ध्यान हटा उस विकट रास्तों से भिड़ पडता है और बेलगाम घोडा ठोकर खाकर गिर पडता है और सवार को ओंधे मुंह पटक देता है।

इसलिए हे मानव, ये विकट मोड़ व रास्ते ही पद, प्रतिष्ठा, सम्मान और अधिकारों के सिंहासन को हिला देने का दम रखते हैं। इन पर खोया नियंत्रण ही सिंहासन को लूट लेता है फिर भले वह मोड विकट मोटा हो या छोटा सा हो। हर छोटा मिट्टी का कण भी अपने अस्तित्व का भान बलवान की आंखों में घुस कर बता देता है। अतः विवेक पर नियंत्रण रख और सब के अस्तित्व का मान बनाए रख।

सौजन्य : भंवरलाल