सबगुरु न्यूज। सत्य क्या है इसकी जानकारी जब तक नहीं होती तब तक नजरों के अनुमान घटनाक्रम का विशलेषण अपने अपने तरीके से करते हैं तथा उस विशलेषण के आधार पर परिणाम बताकर संभावना के खेल से देव और दानव दोनों ही बना देते हैं।
सत्य क्या होगा इससे पहले ही सब कुछ जानने की जिज्ञासा दुनिया के बाजार को गर्म और ठंडा बना देती है। नजरों के अनुमान का जो सांख्यिकी इतिहास है वह बताता है कि गणितीय विधियों के वैज्ञानिक विश्लेषण पर निकाले गए अनुमान लगभग सत्य के इर्द-गिर्द घूमते हैं और 35% से 40% तक ज्यादा बढ जाते हैं। यह भी सत्य का भान नहीं कराते केवल एकत्रित की गई सूचनाओं की प्रवृति बताते हैं।
अनुसंधान एक विस्तृत ओर लम्बी जांच के आधार पर होते हैं तो भी उनकी सत्यता भी संदेह के घेरे में आ जाती है फिर अनुमान तो सिर्फ अनुमान ही होते हैं वे सत्य व असत्य कुछ भी हो सकते हैं। यही स्थिति तात्कालिक बाजार की विषयवस्तु बनकर संभावनाओं का खेल खेलती हुई सट्टा बाज़ार बन जाती हैं, जहां दोनों ही तरह के सौदे लग जाते हैं। एक पक्ष में और दूसरा विपक्ष में। खेल को खिलाने वाला भी मानव ही होता है और वह अच्छी संभावना व कमजोर संभावनाओ दोनों को प्रस्तुत कर देता है।
इसके बावजूद भी सत्य का भान नहीं होता ओर घटनाक्रम का परिणाम सामने आने पर ही सही सत्य सामने आता है। बात जब राजनीति की आती हैं तो पक्ष विपक्ष के अपने दावे होते हैं जमीनी स्तर पर तथा अनुमान के भी अपने दावे होते हैं। जमीनी स्तर पर होने वाली प्रवृतियों के आधार पर लेकिन वास्तव में अंदर गोपनीय ढंग से मतदाता ने क्या किया, इस बात का भान मतदाता के अलावा किसी को भी नहीं होता।
30% पक्ष और 30% विपक्ष के मत मानवीय प्रवृत्ति योग के कारण निश्चित होते हैं पर 40% मत स्वतंत्र होते हैं जिन पर वक्त दस्तक देता है यही पूरे परिणाम को हार जीत में बदल देता है। इसी 40% पर अनुमान लगाए जाते हैं और जो सत्य और असत्य कुछ भी हो सकते हैं। इसी संभावना में बाजार की सरगर्मियां बढ जाती है और इस सट्टा बाजार अपना खेल खेलता है।
भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है इसे जानने के कई शास्त्र अपना दावा करते हैं, जैसे ज्योतिष शास्त्र, अंक शास्त्र, शकुन शास्त्र और तंत्र शास्त्र। लेकिन सब शास्त्र के विद्वान एक मत नहीं दिखते, वे भी अलग-अलग भविष्यवाणी कर देते हैं। ऐसे में शास्त्रों के कोई विद्वान् सफल हो जाते हैं और कोई असफल। फिर भी सत्य क्या है इसका भान नहीं होता केवल अच्छे अनुमान के दौर ही बाजार को गर्म ओर ठंडा बना देते हैं। लड़ने वाला ओर उसका समर्थक दल हर तरह के गुणा भाग कर संभावना को टटोलता रहता है।
संतजन कहते है कि हे मानव ये प्रकृति वेसा ही करती हैं जेसा वह चाहती है। किसी के चाहने या ना चाहने पर भी वह अपने ही अनुसार परिणामों को देती है।
इसलिए हे मानव, तू अपने मनोबल को बढाए रख ओर भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है इसे जानने के लिए ज्यादा चिन्तित मत बन, जो भी होगा वो परमात्मा रूपी मतदाता की इच्छा ही मान। इस जगत में सदा गिरिजा रूपी अन्नपूर्णा का ही सदा राज रहा है ओर वह सबको जीवन को सुरक्षित रखती है, सब के लिए अन्न की पूर्ति करती है।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर