
सबगुरु न्यूज। अपने ही कुल मे फूट डाल कर सबको बिखेरता हुआ व्यक्ति जब अपने ही विचारों से सर्वत्र आग लगवा देता है तो उस आग में सब उसके सामने ही भस्म हो जाते हैं और अंत में वह अपने आप को झांककर देखता है तो उसकी आत्मा में बैठा महा मानव उसे देखकर मुस्कराता है और कहता है, देख लिया मानव अपने कुल का हश्र।
जिस राज धन सम्पत्ति के लिए तू सबमें बैर करता रहा और अपने वर्चस्व को क़ायम रखने के लिए अपने को पाक साफ बताने का ढोंग रचता रहा, अपने हितैषियों का ही पतन करता रहा। आज ना तो कोई तेरा अपना है और ना ही तेरा कोई हितैषी है। अब तू अपने इस स्वर्ण के महलों की दीवारों को देख और खुश होता रह या इनसे सिर फोडता रह।
काल अब तेरे सिराहने पर खडा है, बाकी बची आग लगाने की तेरी हसरत को पूरा कर ले क्योंकि अब इस आग में तुझे ही आहुति देने के लिए अब काल तेरा इतंजार कर रहा है। अब तू किसी को भी गुमराह नहीं कर पाएगा और ना ही महाकाल की शरण में जा पाएगा क्योंकि काल की आंखों से अब आग बरसने लग गई है।
अचानक रावण को होश आया और वह अपने किए की ओर झांककर देखता रहा कि एक छोटे और ना समझ एकमात्र वानर ने अपने बलबूते पर आकर अपने बल बुद्धि से लंका को आग से जला दिया और मेरे कुल का नाश कर दिया।
इतना ही नहीं नाग पाश से बंधे राम और लक्ष्मण को जीवन मृत्यु के खेल से बचा लिया। लक्ष्मण को जब शक्ति ने मारा तो उसने द्रोणागिरी से संजीवनी बूटी लाकर जीवन दान दिला दिया। अहिरावण की गुफा में कैद राम और लक्षमण को पंच मुखी हनुमान बन बचा लाया।
तब समझ में आ गया कि दुनिया जिनको छोटा या निर्धन ओर हीन भावना से देखती है उनका मन कितना धनवान होता है कि वह अपनी जान को भी सदा दूसरों के लिए कुरबान करने के लिए तैयार रहता है क्योंकि वह वफादारी को ही अपनी सम्पत्ति मानता है और जमीनी हकीकत पर भी यही होता है।
इतने में काल ने एक चांटा रावण को मारा और इस दुनिया से उसका अंत कर दिया। उसकी लंका, राज, वैभव सब उसे देखकर मुस्कराते रहे और बोले हे नादान क्या लेकर आया और क्या लेकर जाएगा। तू खाली हाथ आया और ख़ाली यहां से जाएगा।
संत जन कहते हैं कि हे मानव यह जीवन तो दो दिन का मेला है और तुझे इस दुनियां में थोडे ही वर्ष रहना है तो खूब आराम से जी और अपने चंद स्वार्थ के लिए दूसरों के जीवन जीने के तरीकों पर रोक मत लगा। बल, बुद्धि से छल मत और ना ही तेरी नजरों में छोटे और हीन भावना से देखे जाने वाले को लोगों को झूठ फरेब की मखमली चादर ओढा। क्योंकि तेरे मन की मलिनता कभी भी उनकों स्वीकारेगी नहीं।
इसलिए हे मानव प्रकृति ने इस जगत में विभिन्नताएं दीं है और सभी को एक सूत्र में पिरो रखा है। सूरज, चांद, तारे, जमीन, आसमान, जल, हवा और सभी जो भी प्रकृति ने दी। इसलिए तू विभिन्नता में एकता को खंडित मत कर क्योंकि इस विखंडन की आग में आखिर कुल का नाश ही होता है और उस नाश का अंतिम मोहरा तू ही होगा। चाहे तू घर मे आग लगा या दुनिया में आग लगा।
सौजन्य : भंवरलाल