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नए सौर वर्ष का आगाज करती है बंसत ऋतु

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नए सौर वर्ष का आगाज करती है बंसत ऋतु

सबगुरु न्यूज। प्रकृति अपने न्याय सिद्धांतों पर ही कार्य करती है और यही प्रकृति का धर्म है। पृथ्वी पर प्रत्यक्ष रूप से सूर्य चन्द्र के प्रभाव दिखाईं देते हैं तथा अप्रत्यक्ष रूप से अनगिनत आकाशीय ग्रह नक्षत्रों तथा पिंडो के प्रभाव पडते हैं। सूर्य चन्द्र और पृथ्वी की दैनिक गति, स्थिति प्रकृति के कई रहस्यों को प्रकट करती है और हर बार मानव को नए अनुभव दे जाती है। हमेशा पड़ने वाले प्रभावों की भी पुनरावृत्ति करती रहती है, लेकिन हर बार परिवर्तन को साथ लिए हुए। सूर्य व चन्द्रमा के पृथ्वी पर पडने वाले प्रभावों को देखकर ही मानव ने वर्षों तक अनुभव तथा सीखकर सभ्यता और संस्कृति का निर्माण किया।

सूर्य एक तारा है जो स्थिर होते हुए भी अपनी धुरी पर चारों ओर परिक्रमा करता है और एक परिक्रमा में उसे तीन सौ साठ दिन लग जाते हैं। इस पूरी परिक्रमा में सूर्य को आकाश में फैले हुए बारह तरह के तारामंडल के सामने से गुजरना पड़ता है। इन्हीं तारा मंडल को हम राशि के नाम से जानते हैं। सूर्य की यात्रा का प्रारंभ मेष राशि से शुरू होता है और मीन राशि में यात्रा पूरी हो जाती है। बिना रुके सूर्य अपनी यात्रा को लगातार करता रहता है। सूर्य की यात्रा बंसत ऋतु रहती हैं। हर दो तारामंडल की राशियों पर सूर्य का भ्रमण ऋतु परिवर्तन करता है और उसके प्रभाव सीधे पृथ्वी पर पडते हैं।

ऋतु के अनुसार बंसत ॠतु मीन व मेष के सूर्य पर। ग्रीष्म ऋतु वृष व मिथुन के सूर्य पर। वर्षा ऋतु कर्क सिंह के सूर्य पर। शरद ऋतु कन्या तुला के सूर्य पर। हेमंत ऋतु वृश्चिक धनु के सूर्य पर तथा शिशिर ऋतु मकर कुंभ राशि के सूर्य पर।

भारतीय निरयन मत में 14 अप्रेल 2019 को सूर्य मेष राशि में प्रवेश कर नए सौर वर्ष को प्रारम्भ करेंगे। वर्तमान में सूर्य मीन राशि में भ्रमण कर रहे हैं और बंसत ऋतु चल रही है। बसंत ऋतु के चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नए सौर वर्ष तथा नवशक्ति के जागरण काल से पूर्व ऋतु परिवर्तन से वनस्पति और जीव जगत में एक नवीन ऊर्जा का प्रभाव पडने लग जाता है। उत्तर गोल की ओर बढते सूर्य की तेजी बढ जाती है। इस बदलती ऊर्जा चक्र के गुण धर्म के अनुसार ही व्यवहार करने के लिए धार्मिक आस्था और मान्यताएं इसे नवरात्रा के रूप में मानती है और नववर्ष मनाती हैं।

चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से ही हिन्दुओं का नववर्ष प्रारम्भ होता है। राजा विक्रमादित्य ने इसी दिन शको को मार भगाया था, उसके उपलक्ष में नया संवत (सन) शुरू किया जिसे विक्रम संवत के रूप में जाना जाता है। इस दिन घर की रंगाई पुताई करके घर पर ध्वजा लगाई जाती है। नए वस्त्र धारण किए जाते हैं तथा सभी परिवार में मिल बैठ कर भोजन करते हैं तथा संध्या में दीपदान करने की भी प्रथा है। इसी दिन धार्मिक मान्यताओं में चेत्रीय नवरात्रा प्रारम्भ हो जाते हैं और देवी की उपासना नवशक्ति के अर्जन व सुख संपत्ति सुखी और समृद्ध होने के लिए की जाती है।

ज्योतिष शास्त्र में इसी दिन से आगामी वर्ष तक ग्रह नक्षत्रों की स्थिति गति और उनके प्रभाव क्या पडेंगे। इस हेतु तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण आदि के संबन्ध में एक दस्तावेज शुरू किया जाता है जिसे पंचाग कहा जाता है।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल जोगणियाधाम पुष्कर