सबगुरु न्यूज। इस जगत में क्या पाप है या क्या पुण्य है? क्या दोष है और क्या अपराध? क्या दंड ओर क्या सजा है? क्या नियम है और क्या कानून? यह सब कुछ मैं नहीं जानता। क्योंकि इस जगत के निर्माण से आज तक इस जगत में क्या हुआ है उस बीते समय का मैं एक मात्र मूक गवाह हूं। मै काल चक्र हूं और सदियों से इस जगत की हर हरकतों को देखता आ रहा हूं।
अब तक की यात्रा में मैने यही पाया है कि हर काल में इन सबको अपने अपने तरीकों से ही परिभाषित किया जाता रहा है और उन्हें उसी प्रकार व्यवहार में लाया जाता रहा है। काल ने बिना परहेज किए सभी को हर बार अंत में मृत्यु के घर में ही डाला है चाहे जीवन जीने की कोई भी कला उसके पास क्यो ना हो?
मैंने अपार जनसंहार करते हुए प्राणी को देखा है जो केवल अपने हितों को साधने व वर्चस्व को क़ायम रखने के लिए राजा बना और सदियों से आज तक अनगिनत प्राणियों को मौत के घाट उतार कर शूरवीर कहलाया। मैं वह भी देख चुका हूं जब किसी को भी ज़बरन गुनाहगार बनाकर उसे सरे आम मौत के घाट उतार दिया गया।
मैंने उस जीव को भी देखा है, जिस के कारण सदियों से आज महा संग्राम होते आ रहे हैं और उन जीवों को भी देखा है जिन्हें रोज मौत के घाट उतार दिया जाता है और जिन पर आंसू ना बहाए जाते हैं।
कहां क्या करना है और क्या नहीं करना चाहिए, यह सब भी इस जगत के प्राणियों ने देखा और उसी के अनुसार अपने अपने हिसाब किताब की पुस्तकों में लिख कर उसे अपना आदर्श बना दिया तथा जगत के प्राणियों से व्यवहार करवाने के लिए तय कर दिया।
मैं उन कथाओं को भी पीछे छोड़ कर आया हूं जहां भुने हुए तीतर उड गए और सोने का मृग दानव बन कर भाग गए। मैं सदियों से आज तक, प्राणियों पर, घर और बाहर होने वाले अपराधों को देखता हूं तो उन को भी देखता हूं जो येन केन प्रकारेण अपने जीवन को जीते हैं।
हर जगह एकसा व्यवहार, क़ानून क़ायदे देखे हैं तो वहीं एक ही जगह इन सबको अपने अपने तरीकों से ही परिभाषित किया गया और उन्हीं चश्चश्मों की नजरों ने किसी को पाप और किसी को पुण्य कह दिया।
हे जग वालों मुझे दोष न देना क्योंकि मै तो काल चक्र हूं और सदियों से आज तक हुए सभी घटना क्रम का मौन गवाह हूं, मैं ना तो कुछ समझा और ना ही समझना चाहता। मैं तो बस बढना जानता हूं और बीते हुए पल को अपने साथ समेटे हुए हूं।
संत जन कहते हैं कि हे मानव, काल चक्र तो इतिहास का मौन गवाह होता है और वह पाता है कि आज तक सभी व्यवहारों को एक चश्मे से नहीं देखा जाता है। कभी कोई और कभी कोई सभी के, देखने का नजरिया बदल जाता है, उन्हीं के अनुसार मापदंड तय कर दिए जाते हैं इसलिए वह कभी पाप तो कभी पुण्य कहलाता है।
इसलिए हे मानव तू कर्म कर, इस जगत में कभी तुझे पुरस्कार मिलेगा तो कभी दंड। कर्ण कभी सूद पुत्र तो कभी पुत्र तो वीर कहलाया। इसलिए तू केवल कल्याण रुपी रंग की चादर डाल और तेरे मन के चश्मे की नजर से देख। तू अपनें कल्याणकारी कर्म का पालन कर। वह काल और दंड का बादशाह तुझे माफ़ कर देगा।
सौजन्य : भंवरलाल