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दानी हो दाता 'शंकर' शंभू भोले नाथ हो - Sabguru News
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दानी हो दाता ‘शंकर’ शंभू भोले नाथ हो

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दानी हो दाता ‘शंकर’ शंभू भोले नाथ हो

सबगुरु न्यूज। धार्मिक मान्यताओं में भगवान शिव को इस जगत का महादानी, दयालु और शीघ्र प्रसन्न होकर वरदान देने वाला माना जाता है। धार्मिक ग्रंथ बताते हैं कि देवगुरु बृहस्पति ने भगवान शिव की आराधना करके ही देवताओं के गुरु बनने का पद पाया। चन्द्रमा तो शिव भक्ति कर रोहिणी प्रेम के शाप से उत्पन्न क्षय रोग को दूर कर यशस्वी बने, उसी प्रकार राहू केतु शिव भक्ति कर संसार में ग्रहों के रूप में स्थापित हुए। भगवान विष्णु ने शिव भक्ति कर सुदर्शन चक्र प्राप्त किया। देवों और असुरों ने भी शिव भक्ति कर शिव से कई वरदान प्राप्त किए और अपना कल्याण किया।

भगवान शिव तो केवल जल से ही प्रसन्न हो जाते हैं। देव, दानव या मानव जो भी इनकी शरण में जाते हैं वे सभी सुखी और समृद्ध बन जाते हैं। ऋषियों, मुनियों, तपस्वीयो ने अपने ध्यान, साधना से वेद पुराण उपनिषद में शिव के विशेष पूजन के जरिए कल्याण का मार्ग प्रशस्त करने हेतु जानकारी दी है।

गर्ग ऋषि कहते हैं कि जब शिव का पंचाक्षर मंत्र हृदय में पहुंचता है तो कोटि कोटि पाप नाश हो जाते हैं। “नमः शिवाय” यह पंचाक्षर मंत्र सभी वेद, उपनिषद, पुराण और शास्त्रों की आत्मा है।स्कन्ध पुराण के ब्राह्म खंड में बताया गया है कि शिव ही गुरू है, देव है, प्राणियों के बंधु है। शिव ही आत्मा है और शिव ही जीवन है। शिव से भिन्न दूसरा कुछ नहीं है।

जिस हृदय में यह मंत्र है वहां बहुत से मंत्र, तीर्थ, तप व यज्ञों की आवश्यकता नहीं है। इस मंत्र के लिए दीक्षा, हवन, संस्कार, तर्पण, समय, शुद्धि तथा गुरु मुख से उपदेश की आवश्यकता नहीं है।

भारत में प्रचलित व्रत, पूजा, त्योहारों में सर्वाधिक महत्व शिवरात्रि का होता है और इसमें भी महाशिवरात्रि तो सर्वाधिक महत्व की है। ईशान संहिता के अनुसार इस दिन शिव की प्रथम लिंग मूर्ति की उत्पत्ति हुई थी। वैसे प्रत्येक मास में एक शिव रात्रि आती है। प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी शिव रात्रि होती हैं परन्तु फाल्गुन मास की शिव रात्रि महाशिवरात्रि कहलाती है और इसी दिन शिव की लिंग रूप में उत्पति हुई थी। सावन मास की शिव रात्रि भी इसलिए महत्वपूर्ण मानी जाती है कि इस माह में शिव ने प्रसन्न हो कर पार्वती जी को स्वीकार उनकी तपस्या के कारण किया था।

संतजन कहतें है कि हे मानव, सूर्य को शिव का प्रतीक मानते हैं और चन्द्रमा को शक्ति का प्रतीक माना जाता है। यह दोनों अमावस्या के दिन बहुत निकट आ जाते हैं और चन्द्रमा का अस्तित्व नजर नहीं आता है क्योकि सूर्य का पूर्ण प्रकाश चन्द्रमा को ढंक देता है और धरती पर रात्रि में अंधेरा हो जाता है।

केवल इससे एक दिन पूर्व तक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तक ही चन्द्रमा दिखाई देता है और उसके बाद शिव शक्ति का मिलन उस चन्द्रमा को नए चन्द्रमा के रूप में पुनः उजागर करता है। नए चन्द्रमा से पूर्व आखिरी चन्द्रमा हर मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तक ही दिखता है और यही रात्रि सूर्य रूपी शिव की रात्रि बन जाती है क्योकि शक्ति रूपी चन्द्रमा शिव के सामने पहुंच जाता है दूसरी किसी रात में नहीं।

इसलिए हे मानव, जगत की आत्मा सूर्य जल स्त्रोतों को सुखाकर बादल बना सावन मास में इस धरती को जल से भर कर हरा भरा कर देता है और सावन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी शिव रात्रि बन नए चन्द्रमा को सर्वत्र जल स्त्रोतों से परिपूर्ण धरती और उस पर छायी हरियाली को दिखाती है। इसलिए हे मानव, इस जल और हरियाली को सुरक्षित रखेगा तो हर रात्रियां प्रदूषण मुक्त हो जाएंगी तथा नया चांद खुशियों का पैगाम लाता रहेगा।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर