सबगुरु न्यूज। 16 दिसम्बर को सूर्य का धनु राशि के मूल नक्षत्र में दिन को 3 बजकर 26 मिनट पर प्रवेश होगा। सूर्य के धनु राशि में प्रवेश को मलमास व पौष संक्रांति के नाम से जाना जाता है। 14 जनवरी की रात 2 बजकर 6 मिनट पर सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होगा अर्थात अंग्रेजी तारीख़ 15 को सुबह 2 बजकर 6 मिनट पर तब मलमास भी समाप्त हो जाएगा। धार्मिक मान्यताओं में इस मल मास में मांगलिक कार्यों पर प्रतिबंध लग जाता है।
आकाश मंडल में स्थित 27 नक्षत्रों में से मूल नक्षत्र पूर्वाषाढा नक्षत्र तथा उत्तराषाढा नामक नक्षत्र होते हैं जो धनु राशि के तारा समूह में होते हैं। सूर्य अपनी धुरी पर भ्रमण करता हुआ जब धनु राशि के मूल नक्षत्र में प्रवेश करता है तो उसे मलमास के नाम से या पौष संक्रांति के नाम से जाना जाता है।
धनु राशि के मूल नक्षत्र में सूर्य का तापमान बढने लगता है। क्योंकि धनु राशि स्वयं अग्नि तत्व प्रधान होती है और सूर्य स्वयं अग्नि तत्व का कारक होता है। आकाश में धनु राशि का आधिपत्य वृहस्पति ग्रह के अधीन होता है और वह आकाश तत्व तथा हेमंत ऋतु के कारक होते हैं।
सूर्य व धनु राशि के अग्नि तत्व और बृहस्पति ग्रह के आकाश तत्व का ठंडे घर में यह खेल प्रचंड ठंड को पैदा कर देता है तथा सूर्य की गरमी ठंडी पडने लग जाती है। इस समय सूर्य इस खेल के मैदान से मुंह मोड़ कर उत्तर की ओर जाने लगता है। यही सूर्य का उत्तरायन कहलाता है। सात दिनों के इस खेल में अर्थात जो 16 दिसम्बर से 22 दिसम्बर तक होता है।
सूर्य दक्षिण नीचे का मैदान छोड़ कर उत्तर की ओर जाने लगता है और अपनी गर्मी का वार करने लगता है। जमी हुई बर्फ को पिघलाने लगता है। इसके कारण बर्फबारी, ठंडी हवाओं का दौर और बारिश व तूफान की शुरूआत होती है। वृहस्पति ग्रह भी अपनी ठंड को लेकर सूर्य से मुकाबला करने लगता है।
ठंडा पड़ता सूर्य अपनी आत्मा को बृहस्पति ग्रह के हवाले छोड़ देता है और कृत्रिम गरमी के साधनों का इस्तेमाल दुनिया वालों से कराकर ठंड से मुकाबला करने का ज्ञान देता है। सूर्य आत्मा का ग्रह होता है और वृहस्पति ग्रह बुद्धि का ग्रह होता है। दोनों के इस खेल और मिलन से ज्ञान व बुद्धि एक हो जाते हैं और आत्मा का मल धुल जाता है।
यह मास मलमास कहलाकर संदेह देता है कि हे मानव, अब शरीर में बैठी हृदय को धडकाने वाली आत्मा को सुरक्षित रखना है। इस मौसम में शरीर के तापमान को बनाए रख नहीं तो यह आत्मा धीरे से कसक कर निकल जाएगी।
धार्मिक मान्यताओं में इस मास में भगवान विष्णु व लक्ष्मी जी की शादी का उत्सव मनाया जाता है और तिल, तेल, दाल बडे का भोग बनाकर देवों को अर्पण किया जाता है जो “पोष बडा” कहलाता है। पौष संक्रांति में दान पुण्य के रूप में गर्म वस्त्र, ठंड दूर करने के लिए गर्म तासीर के भोजन तथा अग्नि तपने के साधन अलाव व रात्रि में रेनबसेरो की व्यवस्था की जातीं है। हिन्दू धर्म में इस मास में विवाह आदि जैसे मांगलिक कार्यों पर प्रतिबंध लग जाता है।
संतजन कहते हैं कि हे मानव, हेमन्त ऋतु के कारक ग्रह वृहस्पति ग्रह की धनु राशि में सूर्य का प्रवेश होने के साथ ही सूर्य की ऊर्जा को चुनौती वृहस्पति ग्रह से मिलती है। इस चुनौती को जीव व जगत को झेलना पडता है। जीव व जगत भी कृत्रिम साधनों से आग और गर्मी बढाकर गर्म कपड़े पहनकर तथा गर्म तासीर के भोजन ग्रहण कर गर्म पेय पीने के लिए अग्रसर होता है।
इसलिए हे मानव, हेमन्त ऋतु की सर्दी की सर्द सियासत गर्मी की सियासत को जमीदोज कर देती हैं और बर्फ के अंगारे बरसाकर सबको गलाने लगती है। इसलिए हे मानव तू ठंड से बच तथा जरूरतमंद लोगों के लिए रेन बसेरे, गर्म कपड़ो की और ऋतु अनुसार भोजन की यथा शक्ति मदद कर। गर्मी और सर्दी के युद्ध में तू अपनी सियासत मतकर अन्यथा ठंड लग जाएगी चाहे दिन हो या रात हो या तू बाहर हो घर में हो ये ठंड तुझे घेर लेगी।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर