सबगुरु न्यूज। धरती को धूजाने वाले वे बलवान देखते ही रह गए और काल उनके सामने बड़ी बैरहमी से उनके हर एक सूरमा को धराशायी करता रहा। यह सब देखकर भी वे दो महाबली अपने बल व विजय की महिमा का गुण गान करते रहे और गाजते रहे। हर तरफ से हार कर भी जीत की हुंकार भरते रहे।
वे इस जगत को देवों से मुक्त कर देना चाहते थे पर धीरे-धीरे वे खुद ही इस धरती से मुक्त होने लगे और बारी बारी से उसके हर योद्धा काल के शिकार बन धराशायी होते रहे।
अपने वीरों की यह स्थिति देखकर भी वे अनीति के रंग में रंगे रहे और देव सेना पर प्रहार करने लगे। इतना ही नहीं वे उस महाशक्ति को अपने बस में करने के लिए कई योजनाएं बनाते रहे तथा अपने दूत के जरिए उस महाशक्ति को डराने ओर उसे समर्पण कराने के लिए हर छल बल पाखंड का इस्तेमाल करते रहे। लेकिन उस महाशक्ति पर वे पार नहीं पा सकें।
अपने महावीरों चंड मुंड को भेज उस महाशक्ति को घेरने का प्रयास किया पर महाशक्ति ने अपनी तीन शक्तियों का उदय किया। उनमें से एक शक्ति ने बडी वीरता के साथ चंड मुंड का वध कर डाला और जगत में ‘चामुंडा’ के नाम से प्रसिद्ध हुईं। फिर भी दोनों महाबली शुंभ निशुंभ ने हार नहीं मानी और रक्तबीज राक्षस को भेजकर एक भारी परमाणु युद्ध जैसी घोषणा कर दी।
रक्तबीज के खून की बूंद गिरते ही दूसरा रक्तबीज पैदा होता गया और भारी संकट महाशक्ति के सामने रख दिया। महाशक्ति दैवी जगदम्बे ने काली को आदेश दिया कि तुम हर रक्तबीज की गर्दन काट दो और चामुंडा को कहा कि तुम सबका खून पीने लग जाओ और जमीन पर उसके खून की बूंद गिर ना पाए। ऐसा ही हुआ, चामुंडा सभी नए पैदा हुए रक्तबीज का खून पीती रही व मूल रक्तबीज का भी खून पीकर उस रक्तबीज पर आसन्न लगा कर बैठ गईं और जगत में ‘बिजासन’ कहलाईं।
अपनी हार को स्वीकार ना करते हुए फिर शुंभ निशुंभ भी रण के मैदान में उतर गए। महाशक्ति दैवी जगदम्बे ने इन दोनों को भी मौत के घाट उतार दिया तथा सर्वत्र सुशासन की स्थापना की।
संत जन कहते हैं कि हे मानव जो व्यक्ति अपने बल व बुद्धि से अत्याचार करने लग जाता है और अपनी हदों से पार जाकर अनीति का साम्राज्य स्थापित करना चाहता है चाहे वह व्यक्ति समाज, संस्था और फिर राजा ही क्यों ना हो, जल्द ही पतन की ओर चला जाता है। वह सदा के लिए इतिहास में ‘काला काल’ बनकर रह जाता है। क्योंकि अपने बल और बुद्धि से वह सदा अपने को स्थापित करने के लिए गलत मार्गो का चयन कर लेता है, उसकी चाल हंस की ना होकर बगुले की हो जाती है।
इसलिए हे मानव तू गुमराह मत हो, कोई भी बल तुझे प्राप्त हो जाए तो तू राक्षसों की नीति नहीं देवों की नीति का अनुसरण कर ताकि तेरे काल को यह प्रकृति भी त्योहार की तरह तुझे पूजवाती रहे। नवरात्रा की इस पावन बेला पर प्रकृति रूपी महाशक्ति सदा सब को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सहायता करती है।
ऋतुओं के अनुसार फल, फूल व खाद्यान्न को पैदाकर मधु कैटभ और महिषासुर जैसे महारोग से मुक्त करती है। शुंभ निंशुभ जैसी मौसमी बीमारियों से मुक्त कर सुरथ और समाधि जैसे भक्तों का उद्धार करती है, सभी को सुखी और समृद्ध बनाने में मददगार साबित होती हैं।
सौजन्य : भंवरलाल