सबगुरु न्यूज। गढ लंका के मैदान में वानर पुत्र हनुमान जी ने अपने आन्तरिक बल की सुन्दरता का परिचय देकर यह सिद्ध कर दिया कि बाहरी रूप रंग कैसा भी पर जब आंतरिक रूप निखर कर सामने आता है तो हर रूप उसके सामने फीके ही पड जाते हैं। गढ लंका के मैदान में वीर हनुमान जी की हुंकार ने लंका और लंकापति रावण दोनों को चकित कर दिया।
अपने आतंरिक रूप का ऋंगार कर वानर राज केसरी के पुत्र बजरंग बली ने लंकापति रावण और श्री राम दोनों को ही अपनी कद काठी के अस्तित्व का परिचय दे दिया तथा जगत को यह बता दिया कि केवल बाहरी सौंदर्य को निखार कर अपना रूप दिखाना तो केवल एक कला है। आंतरिक रूप का ऋंगार कर अपनी कद काठी का बल ओर साहस दिखाना एक साधना है। आंतरिक रूप व्यक्तितव को निखारता है व अपनी भूमिका का निर्वाह कर उस बल बुद्धि का परिचय देता है जिसकी महिमा स्वयं बिना पंख के प्रचारित ओर प्रसारित हो जाती है।
वानर रूपधारी हनुमान ने अपने आतंरिक रूप का श्रृंगार बाल अवस्था में ही दिखाकर यह सिद्ध कर दिया कि बाहरी सुंदरता से अधिक मन की सुंदरता होती है जिसका आधार बल, बुद्धि और व्यवहार होता है और उसी आंतरिक रूप से देवराज इन्द्र व जगत के सूर्य को बता दिया कि इस जगत में बलवानों की कमी नहीं है चाहे बाहरी रूप श्रृंगार कैसा भी हो।
हनुमान जी ने साबित कर दिया कि आंतरिक रूप और बल से व्यक्ति दुर्लभ से दुर्लभ लक्ष्यों को हासिल कर सकता है और इस संसार में विजय को प्राप्त करता हुआ अपनी गाथा कि अमर कीर्ति छोड़ सकता है।
सात समुन्दर पार अकेले ही जाकर लंकापति रावण को चुनौती देना ओर सीता जी का पता लगा कर श्री राम को असली समाचार देना। वानरों की सहायता से गहरे समुद्र में रास्ता बनवाना व वानर सेना के साथ लंका का रूप सौंदर्य नष्ट करना। नाग पाश में फंसे राम और लक्षमण के बंधन कटवाना द्रोणागिर पर्वत से संजीवनी बूटी लाकर लक्षमण जी के प्राण बचाना यह सब दुर्लभ कार्य थे जिस पर वानर रूपधारी हनुमान ने अपने आंतरिक रूप के श्रृंगार बल व बुद्धि से विजय पा कर श्री राम के लंका विजय के लक्ष्यों को पूरा किया।
धार्मिक मान्यताओं में कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी के रूप में माना जाता है और भारत देश के कई राज्यों में आज हनुमान जी के जन्म का जन्मोत्सव मनाया जाता है। आंतरिक सौंदर्यता के उस महाबलवान हनुमान को पूजा जाता है ताकि सूर्य के पूर्ण दक्षिणायन की नकारात्मक शक्तियों से रक्षा हो और मृत्युतुल्य कष्टों से बचा जा सकें क्योंकि शरद् ऋतु अब पूर्ण सर्दी की ऋतु में प्रकट होने वाली हैं।
संतजन कहते हैं कि हे मानव, रूप चतुर्दशी यही संदेश देती है कि भले ही बाहरी रूप रंग कैसा भी हो पर आंतरिक रूप की कद काठी ही असली रूप के श्रृंगार का परिचय देती है और साबित करती हैं कि इस जगत में किसी का क्या अस्तित्व है और उसका क्या हश्र होगा। बाहरी रूप सौंदर्य की सफलता एक समय बाद खत्म हो जाती है लेकिन आन्तरिक रूप की सुन्दरता सदा अमर और अविनाशी ही रहती है।
इसलिए हे मानव, भले ही बाहरी रूप रंग कैसा भी हो पर तेरे अंदर बैठी आत्मा जो प्राण वायु रुपी ऊर्जा बन कर बैठी है तू उसके रस रूपी प्रकाश से मन को श्रृंगारित कर। यह आत्म बल ही तेरी सुन्दरता को उदघाटित करेगा। आज रूप चतुर्दशी व हनुमान जी का जन्मोत्सव व यम चतुर्दशी का दीपदान करें।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर