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मन की सुन्दरता और रूप चौदस - Sabguru News
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मन की सुन्दरता और रूप चौदस

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मन की सुन्दरता और रूप चौदस

सबगुरु न्यूज। गृहलक्ष्मी मन की सुन्दरता के कारण अपने घर को संभालती है, उसे सजाती है, संवारती है और उस बैजान दीवारों के मकान में जान डाल देती है। घर परिवार में शांति प्रेम व हम की भावनाएं अपना रंग रूप निखारती है। रूप चौदस बनकर अपनी आस्था, श्रद्धा के देव को प्रकट कर खुशियों के दीप जलाती है और हर रोज दीपावली मनाती हैं।

यह सब केवल मन की सुन्दरता पर ही निर्भर करता है। बाहरी सुन्दरता के साथ साथ अंदर से मन की सुन्दरता जीवन के सफर को बेहतरीन बना देती है, अन्यथा मन की गंदगी बंटे हुए को भी बांटकर शनै: शनै: उसका अस्तित्व मिटा देतीं हैं। मन की गंदगी शैतान बन कर सब कुछ नष्ट विनष्ट कर देती है।

प्रकाश की दुनिया में सभी लोगों की शक्ल सूरत दिखाई दे रही थी। वे सूरतें बयां कर रही थी कि ये राजा है, ये मंत्री है, ये धनवान है, ये बलवान है, ये व्यापारी हैं, ये सेवाधारी है और कोई मजदूर है तो कोई भिखारी है। धर्म, जाति, समाज, भाषा, लिंग आदि सभी। प्रकाश की दुनिया सभी सूरतों की एक जिन्दा झांकी दिखा रही थी और सभी अलग-अलग नजर आ रहे थे। इस प्रकाश में सभी अपनी अपनी हैसियत को दिखा रहे थे और अपने गुणों को प्रकट कर रहे थे। प्रकाश के झलावे में सब भूल गए थे कि हम सब हाड़ मांस के जिन्दा लोग हैं।

इतने में अंधेरी दुनिया का बादशाह प्रकट हुआ धूल भरीं आंधियों के साथ। देखते देखते अंधेरों का बादशाह उस प्रकाश की दुनिया को निगल गया ओर सर्वत्र धूल ही धूल छा गई और उस अंधकार में अपनी हैसियत का भान कराने वाली हर सूरत धूल भरी आंधियों की मिट्टीयो से सन गई ओर अंधकार ने सभी की शक्ल सूरतों के अंतर को खत्म कर दिया।

अंधेरों ने किसी को भागने नहीं दिया और आंधी की धूल ने किसी की भी सूरत को पहचानने नहीं दिया। अंधेरों ने प्रकाश को दफना दिया ओर अपनी हैसियत का भान करा दिया कि तू बांट सकता है तो मैं एक कर सकता हूं। सदियों से अंधेरे और उजाले के खेल को खेलती हुई कुदरत केवल अपने ही शक्ति का भान करवाती हैं और संदेश देती हैं कि प्रकाश की हैसियत में चेहरों पर गुमान मत कर क्योंकि प्रकाश की नींव भी अंधेरों में दबी हुई है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव, शक्ल सूरत कि हैसियत खूबसूरती और अधिकारों से नही आंकी जाती है वरन उसके दिल में पैदा हुए विचारों की उन खूबसूरती से पहचानी जाती है जो अंधेरों में भी हाथ पकड़ कर एकता करा देती हैं ओर उजाले की हैसियत को भूला देती हैं।

इसलिए हे मानव, प्रकाश की चकाचौंध में दीपावली केवल एक ही दिन की होती है बाकी दिन केवल इसी आशा मे गुजर जाते हैं कि फिर कभी दीपावली आएगी। इस कारण प्रकाश की चकाचौंध में गुमराह मत हो और अपने कर्म से उन दीयों को रोशन कर जिसमें असली उजाले की झलक मिले।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर