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hindu mythology stories about sawan-श्रावण के श्रृंगार की ओर बढती बसंत रूपी नायिका - Sabguru News
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श्रावण के श्रृंगार की ओर बढती बसंत रूपी नायिका

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श्रावण के श्रृंगार की ओर बढती बसंत रूपी नायिका

सबगुरु न्यूज। अपने प्रियतम सूर्य के मिलन से पूर्ण तृप्त होकर सावन मास में छक कर स्नान करने के बाद बसंत रूपी नायिका ने मुडकर देखा तो सर्वत्र प्रकृति ने उस के लिए पेड पौधों और वनस्पति की जमीन पर हरी चादर बिझा दी है। उसका प्रियतम सूर्य उसके साथ आंख मिचोली कर छुप छुप कर उसे देख रहा है।

सूर्य की इस लुका छुपी के बीच बदली बरस कर नायिका का रूप संवार रही है। यह सब देख सूर्य के प्रकाश तथा बदली की मामूली छेड़खानी की वर्षा के पानी की बूंदे उस बंसत रूपी नायिका को इंद्रधनुषी लहरियां ओढा कर उसके रूप को निखार रही है।

प्रकृति की यह हरकत देख अब बसंत रूपी नायिका लहरियां ओढकर अपने प्रियतम सूर्य के पास हरियाली अमावस्या के दिन मिलने जा रहीं हैं। वह कहती है कि अब श्रावण मास के सत्रह आने वाले हैं और अब में आप को छोड़ अपनी सहेलियों के संग सावन की तीज पूजने जाऊंगी ओर सावन के हिंडोले में झूल कर खुशियां मनाऊंगी।

इस तरह से कहती हुई प्रकृति की हरियाली का श्रृंगार कर बसंत रूपी नायिका सिंजारा पहनती हैं जो प्रकृति ने उसे बहू समझ कर दिया है। तीज पूज कर बसंत रूपी नायिका लोगों के लिए त्योहारों का मौसम लेकर आती हुई सावन की मस्ती में मस्त हो जाती है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव हरियाली अमावस्या की बेला में मिलन के लिए आतुर होते हुए सूर्य और चन्द्रमा का मिलन होता है और इस मिलन में चन्द्रमा खो जाता है और अंधेरे में फ़िर नए चन्द्र का बीजा रोपण होता है। यही घडी पूर्ण चन्द्रमा के उदय काल की घडी है जिसमें लक्ष्मी सर्वत्र भ्रमण कर अन्न धन दौलत व राज को तोहफे के रूप मे देती है।

भले ही पृथ्वी ओर चन्द्रमा की छाया का खेल होता रहे पर अमावस्या मजबूत बनकर जगत का संचालन करती है। इस कारण दिवाली की रात्रि अमावस्या के दिन महालक्ष्मी की पूजा श्रद्धालु जन करते हैं।

इसलिए हे मानव इस अमावस्या से बडी कोई काल बेला नहीं है। यही नए चांद को जन्म देकर उसे पूर्णिमा का चांद बनाती है। इसलिए आगे बढ और इस हरियाली अमावस्या का सम्मान कर अमावस्या व ग्रहण की बेला को अशुभ मत समझ।

सौजन्य : भंवरलाल