सबगुरु न्यूज। सावन की बरसात और धरती को भीजती हुई देख सती पार्वती जी ने सोचा कि अब जमीन उपजाऊ हो चुकी है। अपने स्वभाव और रूचि के अनुसार पार्वती जी ने हाथ पर मेहंदी रचाने के लिए हरी हरी मेहदी के पोधे लगा दिए हैं ताकि यह सावन मास के जल में अच्छी तरह उग आए। यह देख कर उनके पति भगवान शिव ने भी अपनी पंसद के पोधे बो दिए हैं। पार्वती जी में राजसी तत्व की प्रधानता थी इस कारण वह अन्नपूर्णा के नाम से जानी जाती हैं। अन्नपूर्णा इस जगत को अन्न धन लक्ष्मी ओर वैभव से भर देती है और इसी कारण संसार में प्राणी जन सुखी ओर समृद्ध बना रहता है दूसरी ओर यह स्वयं माया बनकर सभी तत्वों का अर्थात सात्विक राजसी और तामसिक को अपने जाल में फंसा लेती है।
भगवान शिव मे तीनों तत्वों की प्रधानता है और इन तीनों गुणों से ऊपर है फिर भी वह माया के वशीभूत हो जाते हैं। मूल रूप से शिव मृत्यु पर विजय करने के कारण मृत्युंजय कहलाते हैं और क्या अच्छा है और क्या बुरा है इस बात पर घोर नहीं करने के कारण वह अघोर कहलाते हैं। इस कारण उनमें तामसी स्वभाव का माना जाता है।
माया के वशीभूत होने के कारण वे राजसी ठाठ बाट के बरदान देते हैं और महासती पार्वती जी के साथ राजसी ठाकुर बन कर रहते हैं। कठोर तप करके वह परम सात्विक बन जाते हैं अपने तीनों स्वभाव के कारण शिव त्रिगुण स्वामी कहलाते हैं। अपने स्वभाव और रुचि के अनुसार शिव ने भी अपने सेवन की वस्तुओं को बो दिया है।
शिव और पार्वती के इस खेल को देख सावन के बादल जम कर बरसने लग गए। इस तेज वर्षा को देख शिव पार्वती वनों की ओर रमन करने के लिए निकल पड़े। महासती पार्वती जी के प्रेम में रमे शिव उन्हें तरह तरह के फूलों से सजा रहे हैं और हरी भरी घास में बैठाकर उनका वृक्षों की शाखा के झूलों पर झुला रहे हैं। शिव की बड़ी जटाओं से गंगा जा चुकी है और गले का सांप भी उन्हे छोड़ जंगलो में स्वतंत्र भ्रमण कर रहा है। चन्द्रमा भी उनके मस्तक से दूर जा कर बादलों से अठखेलियां करने लग गया है। सांप, गंगा और चन्द्रमा सभी अपने स्वभाव के अनुसार स्वतंत्र होकर अपना व्यवहार करने लग गए। शिव और पार्वती जी अपने प्रेम में इतने मगन हो गए कि वह सब कुछ भुला बैठ और सावन का आनंद लेने लग गए।
सावन की तीज आते आते सूरज का प्रकाश ओर बरसात की बूंदें भी आपस में प्रेम करने लगी और आकाश में संतरगी इन्द्रधनुष बन गया, ऐसा लग रहा है मानों कि यह पार्वती को सतरंगी लहरियां ओढा रहे हैं। आकाश में इन्द्रधनुष को देख सती पार्वती जी को एकदम होश आता है और वह शिव को कैलाश पर्वत पर ले जाती है।
पार्वती जी की मेहंदी उगकर अपने परवान पर आ जाती हैं तथा पार्वती जी मेहंदी को काटकर पीसती और हाथों पर मेहंदी रचाकर महादेव को दिखाती है और कहती हैं देखो यह कितनी लाल है जो अपने प्रेम की अमरता को दिखा रही है।
संतजन कहते हैं कि हे मानव, शिव और पार्वती जी की कथा यह संदेश देती है कि अब सावन की वर्षा शुरू हो गई है और धरती की तथा शरीर की गर्मी भी अब अनुकूल हो गई है अतः धरती से प्रेम कर और उसमें खेतबाडी कर तथा वृक्षारोपण, पौधारोपण कर सावन की इस हरियाली को सदा बनाए रख ताकि प्रदूषण से मुक्ति मिलेगी और कृषि व वनस्पति उत्पादों के भंडार वर्ष भर भरे रहेंगे। ठंडे दिमाग की यह अनुकूलता ही पति पत्नी ही नहीं सब घरों में प्रेम लाएगी और व्यवहारों के मीठे घेवर खिलाएगी।
इसलिए हे मानव सावन की वर्षा में क्रोध अहंकार और हठ को त्याग, ठंडे और सुहाने मौसम का लुत्फ उठा। प्रकृति के इस निशुल्क उपहार का आनंद ले।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर