सबगुरु न्यूज। कलयुग के सूप की विशेषता होती है कि वो सभी अर्थ पूर्ण और सारगर्भित बातों को छिपा देता है तथा थोथी बातों को सार बताकर उसे सुन्दर थाली में सजवाकर परोस देता है।
शायद कलयुग की यही विशेषता होती होगी और उसका शायद यही अमृत है जिसे पीकर वह अमर बेल की तरह बढ़ने लगता है। कलयुग के सूप की यही संस्कृति “सत्य” को कुचलती हुई गलत सोच गलत विचार और नकारात्मक बात का नाम देकर उसे पीडित करती हुईं उसका गलत ढंग से प्रचार प्रसार करती है और सभी सारगर्भित बातों को छिपा देती है।
थोथे व्यंजनों की थाली बडी शान से परोसी जाती है लेकिन उसकी पौष्टिकता का दम जल्दी ही समझ में शरीर को आ जाता है। शरीर अनेक समस्याओं का जखीरा बन जाता है और अपने जीवन को बचाने में लगा रहता है।
थोथा आखिर थोथा ही होता है जिसको सूप (छाजला) उडा देता है और सार सार को रख लेता है। यही सूप का मूल गुणधर्म होता है। हकीकत में सूप आज भी वैसा ही स्वभाव और गुणधर्म रखता है। इसी सूप की उपमा सज्जन व्यक्तियों को दी गई है कि वह सार सार विषय सामग्री का ही अनुमोदन करे तथा थोथी विषय सामग्री को नकार दे।
कलयुग इस सूप के गुण धर्म को बदल रहा है और सार सार को नकार रहा है तथा थोथे का संचय कर उसके गुणगान कर रहा है।
यह मान्यता भविष्य पुराण की है जो शनैः शनैः अपने झंडे लहराने के लिए जूझ रही है और भौतिकता की दौड़ में मानवीय संस्कृति व सम्बन्धों को पीछे ढकेलती जा रही है। बदलते दौर में मानवीय मूल्यों की नहीं केवल अपने हितों की सोच सम्बन्धों को दरकिनार करते हुए अपने आप को स्थापित करवाने में लगी रहती है।
येन केन प्रकारेण अपने को सच्चा साबित करने में लगी रहती है और सच जमीन पर पडा हुआ आंसू बहाता रहता है, झूठ महाबली बनकर हर तरह से अपने को महाबली होने का प्रमाण पत्र लेने में जुटा हुआ है।
सत्य को कुचलना सुन्दरता का अपमान है और जहां सत्य कुचला जाता है वहां पर शिव का निवास नहीं होता है वहां केवल रूद्र रूलाता ही है, सदा वहां पर काल अपनी लीला रचाता रहता है। दया और क्षमा वहां से विदा हो जाती है। धर्म व परमात्मा का स्थान लोभ, पाप और काल ले लेते हैं। सभी विषय अव्यवस्थित हो कर अपना बदसूरत रूप बना लेते हैं।
संत जन कहते है कि हे मानव शिव तो कल्याण का नाम है। संकट और बाधाओं को मिटाने का नाम है, जहां देना कुछ भी नहीं होता है सिर्फ दया के रूप में लेना ही होता है। वे शमशानी बनकर भी सबको राजसी ठाट-बाट दे देता है और सात्विक बनकर जगत को संतुलित कर देता है। वहां पर अहंकार नहीं नम्रता है। क्रोध नहीं क्षमा है। अपना कल्याण और नाम नहीं वरन् जन कल्याण है। अपने हितों को साधने के लिए बखेडा करना नहीं वरन दूसरों के हितों को साधने के लिए बखेडे को सिमटाना है। इस लिए वो सुंदर है।
इसलिए हे मानव, तू अपने आप को स्थापित करने लिए मायावी खेल की ओर मत बढ क्योंकि यह बाहर से ही सुन्दर लगते हैं, अंदर से यह सब कुछ जर्जरित होता है। यही सुन्दरता पर लांछन है। इस कारण तू कल्याणकारी शिव की तरह सुदंर बन ना कि रूलाने वाले रूद्र की तरह सब कुछ बदसूरत बना। शिव ही सुन्दर है कल्याणकर्ता के रूप में।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर