सबगुरु न्यूज। सृष्टि काल से आज तक केवल सकारात्मक और नकारात्मक शक्तियां ही संघर्ष करती आ रही हैं। इन दोनों की हार और जीत कभी स्थायी नहीं रह पाई। फिर भी नकारात्मक शक्तियों का पलडा सदैव भारी रहा। सकारात्मक शक्तियां भी संघर्ष करते हुए नैतिक मूल्यों को स्थापित करने में लगी रहीं।
नैतिक मूल्यों को सकारात्मक सोच से स्थापित करना ही धर्म था और नकारात्मक सोच से नैतिक मूल्यों को उखाडना ही अधर्म बना। इन नैतिक मूल्यों की परिभाषा में प्रकृति और जीव जगत को बनाए रखने के लिए प्रेम, सहयोग और समन्वय करके उनको संवारना, संजोये रखना साथ ही उन्हें संवर्धित करना ही होता है। जमीनी स्तर पर यही धर्म कहलाया जो कालांतर में अपना रूप परिवर्तन करता रहा और शनै शनै अपने मूल उद्देश्य से भटक गया।
नैतिक मूल्यों के मूल गुणों को उखाडती हुई नकारात्मक सोच अधर्म बनकर प्रकृति और जीव व जगत को खत्म करने लगी तथा समाज व उसके ढांचे में महापरिवर्तन आने लगे। नैतिक मूल्यों के स्थान पर व्यक्ति विशेष के मूल्य अपना शासन स्थापित करने लगे। नकारात्मकता की इसी सोच से नैतिक मूल्यों के धर्म की हानि होने लगी।
श्री कृष्ण के जन्म से पूर्व यही स्थितियां पौराणिक इतिहास की कथाएँ बताती है। नकारात्मक के इस काल में सकारात्मक सोच के एक विराट पुरूष ने कृष्ण के रूप मे जन्म लिया ओर तमाम नकारात्मक शक्तियों को खत्म कर पुनः नैतिक मूल्यों को स्थापित किया। नैतिक मूल्यों के इस धर्म की पुनः स्थापना में विराट पुरूष ने महायुद्ध छेडा ओर यही महायुद्ध धर्म का महायुद्ध इस जगत में कहलाया।
श्रीकृष्ण तो नैतिक मूल्यों के धर्म युद्ध को जीत कर चले गए। उसके बाद बिखरी हुई नकारात्मक शक्तियां फिर एक होने लगीं और नैतिक मूल्यों के धर्म के महायुद्ध में अपनी हार का बदला लेने लग गईं। उसने अपनी विजय का ऐसा शंखनाद किया कि सकारात्मक सोच की शक्तियों के टुकड़े टुकड़े कर कलयुग के राज्य में डाल दिया और कलयुग अपनी प्रंचड विखंडनकारी अनीति से नैतिक मूल्यों के धर्म पर राज करने लग गया।
संत जन कहते हैं कि हे मानव, काल चक्र गतिमान रहकर आगे बढ़ता जा रहा है और नकारात्मक सोच का यह कलयुग भी स्थायी रूप से नहीं रह सकता। फिर विराट पुरूष के रूप में कोई सकारात्मक सोच की शक्ति जन्म लेगी और कलयुग की नकारात्मक शक्ति का अंत कर नैतिक मूल्यों के धर्म को पुनः स्थापना करेगी।
इसलिए हे मानव तू बिना भय के अपनी सोच को सकारात्मक बनाए रख और नैतिक मूल्यों के धर्म की स्थापना में लगा रह तब ही प्रकृति और जीव व जगत सुरक्षित रहेंगे।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर