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सारथी बनकर श्रीकृष्ण फिर आना

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सारथी बनकर श्रीकृष्ण फिर आना

सबगुरु न्यूज। सृष्टि आरंभ से ही यह जगत स्वार्थ के व्यवहारों से घिरा हुआ है। आगे बढते हुए कालचक्र ने इसकी मात्रा में बेहिसाब वृद्धि कर दी है। स्वार्थ भले ही हर मानव की मनोवृत्ति से जुडा हुआ है फिर भी यह लम्बे काल तक अपनी सीमाओं को लांघता नहीं था अब स्वार्थ जगत का व्यापार बन कर रह गया है।

हर रिश्ते नाते सम्बंध प्रेम ओर सहयोग यहां तक की अधिकार ओर कर्तव्यों व दायित्वों का निर्वहन तथा सेवा भी स्वार्थ के गहरे रंगों से छक कर स्नान करने लग गया है और सर्वत्र यह अपने पांव पसारे बैठा है।

जगत में अब स्वार्थियो के ही मेले लगते हैं और हर व्यवहार स्वार्थ से भरा हुआ रहता है। सामाजिक आर्थिक राजनैतिक तथा धार्मिक या कोई भी व्यवस्था क्यो ना हो वो किसी ना किसी रूप में स्वार्थ को साध रही है।

हर काल में स्वार्थ तो था पर “सारथी” ने स्वार्थ के टुकड़े कर डाले तथा हर स्थिति ओर परिस्थितियों में पीड़ित जन के साथ खड़ा होकर उसे दिशा और निर्देशन दे कर तथा आवश्यकता पड़ने पर अपने बल का भी निस्वार्थ भाव से उपयोग कर अपनी सारथी होंने की भूमिका को पूर्ण रूप से सार्थक बना देता था।

पौराणिक इतिहास की कथाएं बताती है कि दैत्य राज भक्त प्रह्लाद ने दैत्यों के सारथी के रूप मे राजा बलि को स्वर्ग का अंतिम विजेता बना दिया तो ऋषि बाल्मीकि ने लव कुश के सारथी के रूप मे श्रीराम का अश्वमेध रथ रोक दिया ओर वही श्रीकृष्ण सारथी बन पांडव पुत्र अर्जुन को महाभारत के महा युद्ध मे विजेता बनाया।

साथी के रूप में शकुनि ने भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया पर उसका अपना स्वार्थ दुर्योधन से जुडा था। वह स्वार्थी बन अपने स्वार्थ को साध रहा था अतः वह सारथी नहीं बन सका। श्रीकृष्ण केवल सारथी ही बने रहे उनके भाव व नीति में केवल कल्याण ही निहित था। वे अपने लिए नहीं वरन् मानवीय मूल्यों की रक्षा तथा समाज में व्यापत हर क्षेत्र की हर नकारात्मक सोच को खत्म करने में लगे हुए थे। इस कारण वे सारथी ही थे।

आज विश्व पटल पर नकारात्मक शक्तियां अपने आप को सारथी घोषित कर सकारात्मक विरोध करने वालों को ही मरवा रही हैं और हर पल अपने स्वार्थो की पूर्ति के लिए पवित्र और पावन होने की दुहाई दे रही हैं।

संत जन कहते हैं कि हे मानव आज केवल सारथी की ही आवश्यकता है स्वार्थी की नहीं। अन्यथा स्वार्थी जन तेरे मानव रूप की पहचान भी अपने शब्दों के रूप में कर तुझे कर्ण बनाकर मानव मूल्यों के नैतिक धर्म के विरुद्ध युद्ध मे खिलाफत करा तेरे हाथ से तेरे ही कूनबे को ही मरवाने के लिए मजबूर करेंगी।

इसलिए हे मानव तू संयम रख और अपने स्वार्थ को सीमा में बांध। तब ही तू अपना सारथी बन पाएगा। अन्यथा मन रूपी स्वार्थ आत्मा रूपी सारथी को गंवा देगा।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर