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hindu mythology stories about tone totke by joganiya dham pushkar-टोने टोटके और वास्तु दोष की राजनीति - Sabguru News
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टोने टोटके और वास्तु दोष की राजनीति

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टोने टोटके और वास्तु दोष की राजनीति
hindu mythology stories about tone totke by joganiya dham pushkar
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सबगुरु न्यूज। मानव में जन्मजात भय की मनोवृत्ति होती हैं और वहम इसे हवा देकर बेहाल बना देता है। भय और वहम मिलकर हर उस घटनाक्रम को हमारे साथ जोड़ देते हैं जो हमारे अनुकूल नहीं हो रहा। अनुकूल और सार्थक प्रयास करने के बावजूद भी हमें किसी भी कार्य में सफलता नहीं मिल रही है तो वहम हमें बार बार उस ओर धकेलने लग जाता है कि किसी ने कुछ कर तो नहीं दिया है।

इस बारे में किसी अन्य को हम जब यह बात बताते हैं तो वह व्यक्ति भूत, प्रेत, टोने, टोटके तथा आत्मा के दोषों की उन अनगिनत कहानियों को सुनाकर हमें भयभीत कर देता है, न चाहते हुए भी हम उस अदृश्य शक्ति के दोषों को दूर करने के उपाय करने लग जाते हैं। परम्परावादी परिवार ही नहीं आधुनिक परिवार भी इसमें फंस जाता है।

हमारे धर्म ग्रंथ की विचारधारा आस्था ओर मान्यताएं भी कुछ इस ओर ले जाती हैं। महाभारत के महायुद्ध में श्री कृष्ण जी अर्जुन को कहते हैं कि —

हे अर्जुन! जब यह जीवात्मा सत्वगुण की वृद्धि में मृत्यु को प्राप्त होता है, तब तो उत्तम कर्म करने वालों के मल रहित अर्थात दिव्य स्वर्गादि लोकों को प्राप्त होता है। रजोगुण के बढ़ने पर, अर्थात् जिस काल में रजोगुण बढता है उस काल में मृत्यु को प्राप्त होकर, कर्मों की आसक्ति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है तथा तमोगुण के बढ़ने पर मरा हुआ पुरूष कीट, पशु आदि मूढ योनियों में उत्पन्न होता हैं।

गरुड़ पुराण के अनुसार व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसके क्रिया कर्म दस दिन तक नियमानुसार न होने तथा ग्यारहवें और बारहवें दिन का कर्म न होने पर व्यक्ति प्रेत योनि से चला जाता है। जहां भी मृत्यु होती है वहीं पिंड दान करना चाहिए। नियमानुसार क्रिया कर्म करने पर व्यक्ति की आत्मा को सदगति की ओर जाती है। अन्यथा वह व्यक्ति प्रेत योनि में जाकर अपने परायों को परेशान करती है। आत्महत्या करने वाले व्यक्तियों की नारायण बलि का प्रावधान है तभी वह सदगति की और अग्रसर होता है।

यदि गरुड़ पुराण की इस बात को स्वीकार कर ली जाए तो स्वतःही भूत-प्रेत, टोना-टोटका का अस्तित्व समझ में आ जाएगा। वास्तु सिद्धांतों के अनुसार वास्तु पुरुष पर 32 देवता बैठे हुए तथा चारों ओर पिशाची शक्तियां बैठी हुई हैं।

हमारे धार्मिक ग्रंथों, पुराणों ने भूत प्रेत, राक्षस पिशाच, जादू टोना टोटका आदि का अस्तिव स्वीकार किया है तथा इनसे ग्रसित होने पर इनका उपचार भी इन्हीं धार्मिक ग्रंथों में उपलब्ध है।
आदि ऋषियों ने अपने आत्म ज्ञान के बलबूते पर प्राच्य विद्याओं के जो सिद्धांत खड़े किए हैं वे मन गढन्त या मात्र कोई कल्पना ही नहीं है। आज का विज्ञान और विज्ञानिकों उन्हीं सिद्धांतों की पुष्टि कर रहा है।

हमारे ऋषिमुनियों ने हजारों वर्ष पूर्व ब्रह्माण्ड की तारा राशियों की आकृति, ग्रह, नक्षत्र, तारे तथा मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों की जानकारी दे दी थी। उनकी पुष्टि आज वैसे ही हो रही है। अतः उनके महत्वपूर्ण योगदान को नकारा नहीं जा सकता है।

यदि हम धार्मिक ग्रंथों को स्वीकारते हैं तो उसमें वर्णित विषय वस्तु को भी स्वीकारना पड़ेगा जबकि आधुनिक विज्ञान भूत प्रेत, पिशाच, जादू ,टोना, टोटका को नकारते हुए इसे अंधविश्वास मानता है। सत्य क्या है, इसका फैसला समय करता है तथा वहीं व्यक्ति को स्वीकारना पड़ता है।

किसी कार्य को प्रारम्भ करते समय या कहीं जाते समय छींक का आना, बिल्ली का रास्ता काटना, कुत्ते का कान फड़फड़ाना आदि जैसे अपशकुन आज भी अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं। व्यक्ति बाहरी नहीं तो आन्तरिक रुप से कुछ ना कुछ सीमा तक तो उसे अपने मन से नहीं निकाल पाता है।

वास्तुशास्त्रीय दृष्टिकोण से भूत-प्रेत, जादू टोना-टोटका, देवदोष पितृदोष आदि के लिए नैऋत्य दिशा का अपना एक विशेष योगदान होता है। संपूर्ण वास्तु में नैऋत्य दिशा का महत्वपूर्ण स्थान होता है, इस क्षेत्र में समस्त प्राण ऊर्जाएं ईशान कोण से आकर एकत्र होती है। वास्तु शास्त्र के सिद्धांत इस दिशा को मजबूत ऊंचा और भारी रखने के दिशा निर्देश देते हैं।

इस दिशा में खिड़की, दरवाजे, खड्डे, कुंआ, बावड़ी, तालाब इत्यादि न रखें अन्यथा नैऋत्य दिशा से आने वाली प्राण घातक ऊर्जाएं वास्तु में प्रवेश कर जाएंगी तथा उस वास्तु तथा उसमें रहने वालों को मृत्युतुल्य कष्ट प्रदान करेगी।

इस प्रकार से ईशान से आने वाली शुभ ऊर्जा को नैऋत्य में एकत्र करने देनी चाहिए तथा नैऋत्य से आने वाली अशुभ ऊर्जा को अंदर प्रवेश नहीं करनी चाहिए और ना ही उसे एकत्र करने हेतु खड्डे व पानी के टैंक यहां बनाने चाहिए।

वास्तु हेतु चयनित भूखंड किसी भी स्थिति में नैऋत्य दिशा में बढ़ा हुआ या कटा हुआ नहीं होना चाहिए अन्यथा अशुभ शक्तियों (ऊर्जाओं) के प्रभाव वास्तु को प्रभावित करने लग जाएंगे, फलस्वरूप उस वास्तु में अनहोनी घटनाएं होने की दर बढ़ती रहेगी। इस कोण में पित्तरों की उपस्थिति इस दोष को दूर करने में सहायक होती है।

वायव्य कोण भी प्रेत आत्माओं को आमंत्रित करता है तथा उनकी कमी या दोष के कारण, गलत निर्माण के कारण तरह-तरह की आवाजे सुनाई दे सकती है। अतः घर में पराशक्तियों और आत्मा को आकर्षित करने में वायव्य कोण की प्रमुख भूमिका होती है।

जिस प्रकार एक आम मान्यता है कि बच्चे को नजर लग जाती है, चंद्रमा की कमी के कारण।इस कारण बच्चे की नजर उतारने के तंत्र बने हुए है। चांदी का चंद्रमा बच्चे के गले में पहनाया जाता है।

पराशक्ति, आत्माओं को आमंत्रित करने का कार्य वायव्य कोण करता है। यदि वायव्य कोण में नियम विरुद्ध निर्माण हो, वायव्य कोण बढ़ा हुआ या घटा हुआ हो तो वहां मृत आत्माएं अपना अस्तित्व जमा सकती है। इस क्षेत्र में सीढियां, तलघर, पानी का टैंक, तरण ताल, शौचालय, सेप्टिक टैंक इत्यादि नहीं होने चाहिएण् तथा ना ही स्थान गंदा होना चाहिए। पुराने, बर्तन, कपड़े का सामान यहां नहीं होना चाहिए।

इस कोण का कारण चंद्रमा होता है। यदि चन्द्रमा की स्थिति ठीक न हो तो तुरंत दृष्टि दोष या बुरी आत्माओं का प्रभाव उस वास्तु पर हो जाता है तथा उस वास्तु में रहने वाले कुछ व्यक्ति पर जिनका चंद्रमा कमजोर होता है उसे फिटस(चेडे) आने लग जाते हैं। घर में ऐसा लगने लगता है कि कोई साया इधर से उधर घूमता रहता है, कई अजनबी एवं अनजानी घटनाएं घर में करने लगती है।

संत जन कहतें है कि हे मानव, टोना टोटका, भूत प्रेत और वास्तु दोष धर्म व संस्कृति की मान्यता और विश्वास है जो आज भी आधुनिक विज्ञान को अंगूठा दिखाती है। समाज का एक बडा तबका आज भी इन सब बातों पर विश्वास करता है। इन सब के उपायों से लाभ मिलता है या नहीं मिलता बस एक ही विचारणीय प्रश्न बन जाता है।

जमीनी स्तर पर आज भी हमारे देश में अत्याचार, धार्मिक विवाद, आतंकवाद, बलात्कार जैसी भारी समस्याएं विद्यमान हैं। क्या इन सब के मूल में भी भूत प्रेत, टोटके, जादू टोना, वास्तु दोष विद्यमान है, क्या इनके उपाय इन शास्त्रो में नहीं है।

इसलिए हे मानव तू भय के भूत और वहम के टोने टोटके को दिल से हटा तथा आत्म बल मजबूत कर और अपने कार्य को बखूबी से अंजाम दे वास्तु दोष स्वत: ही दूर हो जाएंगे।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर