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नींद पराई पर सपने अपने थे

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नींद पराई पर सपने अपने थे

सबगुरु न्यूज। संकट की घड़ी से जूझते हुए लंकापति रावण परेशान और हैरान था कि वनवासी और राज्य विहीन राम व लक्षमण ने वानर तथा रीछ की सेना की मदद से उसके कई वीरों को मौत के घाट उतार दिया हैं और अब युद्ध जीतना भी आसान नहीं रहा है।

एक रात उसे ध्यान आया कि उसका एक भाई भारी कद काठी का वीर हैं और वह गहरी नींद में सो रहा है। यह बात ध्यान में आते ही वह पराई नींद में अपनी विजय के सपने देखने लगा।

अगली ही सुबह उसने गहरी ओर लम्बी निद्रा में सोये अपने भाई कुंभकर्ण को जगाने के लिए अपनी सेना लगा दी। ढोल नगाडे बजवाने शुरू कर दिए। गहरी नींद में सो रहे कुंभकर्ण को येन केन प्रकारेण उठा दिया गया।

नींद से जगाए कुंभकर्ण ने जब अपने भाई रावण को देखा तो वह बोला कि हे भाई ऐसा कौनसा संकट आन पडा जो तुम ने मेरी गहरी निद्रा तुडवा दी। रावण ने अपनी व्यथा सुनाई ओर बोला कि यह युद्ध अब तुम्हारे बिना मैं नहीं जीत सकता। इसलिए तुम मेरी मदद करो।

कुंभकर्ण ने सारी बात सुनकर कहा तुमने बहुत बडी अनीति कर ली। पराई स्त्री का बलपूर्वक हरण कर लिया। अपने कुल की मर्यादा को भंग कर दिया और साक्षात महालक्ष्मी का हरण कर लिया। तुम्हारी अनीति ही तुम्हारी हार और अंत का कारण बनेगी। हे भाई तुमने मेरी नींद में अपने विजय के सपने देख लिए लेकिन सुनो पराई नींदों के सपने पराये होते हैं और अपने सपने सच नहीं होते।

अपनी महान कद काठी ओर वीरता के साथ कुंभकर्ण युद्ध करते हुए मारा गया और रावण देखता ही रह गया, उसके विजयी सपने टूट गए। अंत में रावण मारा गया। रावण मर तो गया पर नहीं मरा उसकी सोच का सपना जो पराई नींदों में देखा जाता है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव, पराई नींद मे अपने सपने को साकार नहीं किया जा सकता है। अपने सपने तो अपने किरदार की कद काठी की भूमिका के दायित्व को भलीभांति निभा कर ही पूरे किए जा सकते हैं।

इसलिए हे मानव तू अपनी नींद को गंवा मत क्योंकि दिन के उजालों में बनाए गए सपने रात की निद्रा में नहीं आते। रात की नींद और उसका सपना तो पकड से बाहर होता है।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर