सबगुरु न्यूज। अहंकार को अपना चेहरा बनाते हुए रावण ने यह साबित कर दिया था कि इस दुनिया में मेरे अलावा कोई बलवान नहीं है। इसी नीति के तहत उसने कैलाश पर्वत को उठाने का और शिवलिंग को लंका में ले जाने की नाकाम कोशिश की। श्रीराम की पत्नी सीता जी को धोखे हरण कर लंका ले गया।
विपदा में पडे राम के मददगार बने जब सेवक पवनसुत हनुमान जी ने जब रावण की नगरी लंका में प्रवेश किया तो तो रावण हनुमान जी का अपमान करने लग गया। इतना ही नहीं उनकी पूंछ में आग लगा दी। रावण ने हनुमान जी को एक वानर ही समझा और अपने लंकापति होने का रूतबा बताया। हनुमान जी ने रावण की लंका अकेले ही तहस नहस कर कर डाली और उसके कई वीरों को मार डाला।
इस पर क्रोधित हो कर रावण ने अपना बल दिखा कर उनकी पूंछ में आग लगा दी। यह देखकर हनुमान जी मुस्कुराये ओर जलती हुई पूंछ के साथ लंका में उडने लगे। लंका के कई हिस्सों को आग से जला दिया। लंका में त्राहि त्राहि मच गई, लंकावासी घबराने लगे कि साक्षात लक्ष्मी रूपी सीता हमारी लंका में कैद है और अब लंका तथा लंकेश की तबाही की शुरुआत हो चुकी हैं। अकेले वानर हनुमान जी ने इतना बिगाड़ डाला तो शेष वानर सेना तो पूरे साम्राज्य को तहस-नहस कर देगी।
कालबल ने विभिषण को जन्म दिया और सत्य का चोला ओढ़ाकर असत्य पर विजय करने का ज्ञान दिया। विभिषण ने वैसा ही किया लेकिन अंत में रावण को मरवाकर वह लंकेश बनकर दुनिया में विभिषण के नाम से बदनाम हो गया। यह घर का भेदी था जिसने अजेय लंकेश को हरवा डाला।
भले ही विभिषण का काम उस काल के चश्मे से देखा जाए तो वो एक जनकल्याण का काम ही था। पर आने वाले कल में यही विभिषण जनकल्याण नहीं केवल अपने ही कल्याण का मार्ग बनाता हुआ इस युग तक हेय दृष्टि से देखा जाने लगा।
संतजन कहते हैं कि हे मानव, हनुमान जी ने अपने लक्ष्य का भेदन विपरीत परिस्थितियों में चुनौतियों का सामना करके अकेले ही कर लिया और जन कल्याणकारी शक्ति के रूप मे अपने आप को बिना उपहार लिए स्थापित कर लिया।
इसलिए हे मानव, आज का विभिषण तो दूसरों से प्रायोजित होता है और वह सच्चा सेवाधारी बनने का स्वांग रचता है, अंदर घुस कर सारे भेद लेता है और राम को पटखनी दिलवाकर झूंठे आंसू बहाता है। शनैः शनैः अपने ही प्रायोजितकर्ता रावण की गोद में बैठ जाता है। आज के राम की हार पर खुशियां मनाता है। इसलिए हे मानव, तू आज के विभिषण पर रहम मत कर और पहली बार ही उन्हें सड़क का रास्ता दिखा दे।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर