सबगुरु न्यूज। मन का इस दुनिया में कोई भौतिक अस्तित्व नहीं होता है फिर भी वह इस दुनिया में अपनी ही बादशाहत कायम रखता है और तमाम दुनिया को भौतिक सुख सुविधाओं से लाद देता है। वह अपना भौतिक साम्राज्य इस दुनिया में फैला देता है और अभौतिक संस्कृति को पीछे छोड़ उससे बहुत आगे निकल जाता है।
वह यह संदेश देता है कि कि इस दुनिया में केवल मात्र कर्म ही पूजा है और कर्म ही जमीन का भगवान है। वह ज्ञान और बुद्धि के घर पर कब्जा कर उसे अपनी ही विरासत बना लेता है तथा उसका इस्तेमाल अपने ही ढंग से करता है चाहे उसे सकारात्मक या नकारात्मक किसी भी रास्तों का चयन करना पडे।
मान, प्रतिष्ठा और सम्मान की अभौतिक संस्कृति भले ही मन के नकारात्मक सोच पर आंसू बहाती रहे पर मन आकाश के चन्द्रमा की तरह तेज रफ़्तार से चलता मनमानी करता है। मन की इस हरकत को सूर्य समझाईश करता है। चन्द्रमा की तरह बना मन सूरज की एक बात भी नहीं मानता है और सूरज की आंखों से आंसू निकल पडते हैं। एक व्यतिपात योग का निर्माण होता है और उस योग मै मन सिद्धि को प्राप्त कर सफल हो जाता है।
प्राण वायु रूपी आत्मा शरीर को जिन्दा रखती है और उस शरीर के गुणों से बना मन, बुद्धि की सकारात्मक ओर नकारात्मक बैसाखी के जरिए अपना राज करता है। वास्तव में आत्मा शरीर को जिन्दा रखती है लेकिन बुद्धि अगर सक्रीय ना हो तो वह शरीर एक एक जिन्दा लाश की तरह ही होता है, भले ही उसे प्राण बचाव यंत्रों पर जिन्दा दिखा दिया जाए। बुद्धि के खजाने पर मन ही व्यवहार करता है और वह शरीर को रक्षित करता है ताकि आत्मा जो प्राण वायु रूपी ऊर्जा है वो शरीर से बाहर नहीं निकल जाए।
शरीर रूपी महल पर प्राण वायु रूपी ऊर्जा और उन सबके गुणों से उपजा मन यह दोनों कब्जा जमाये बैठे रहते हैं और दोनों के ही सुन्दर तालमेल से यह नामधारी शरीर अपना चहुमुखी विकास करता है। यदि दोनों में उचित तालमेल नहीं होता है तो फिर शरीर की शासन व्यवस्था बिगड़ जाती है। मन और आत्मा एक दूसरे को कोसते रहते हैं तथा शरीर निपटने के कगार पर खडा हो जाता है। आत्मा शरीर से निकल जाती है और मन का अस्तित्व खत्म हो जाता है, नामधारी शरीर मिट्टी में मिल जाता है।
संतजन कहते हैं कि हे मानव, व्यवस्था को आत्मा जिन्दा रखती है और मन की अनुकूलता उसे गति प्रदान करती है। दोनों ही मिल कर हर संकट का निवारण करती हैं। यदि मन मनमानी पर उतरता है तो फिर आत्मा भले ही उसे कैसी भी समझाईश क्यों ना करे वह व्यवस्था अपनी बरबादी के तराने गाने लग जाती है।
इसलिए हे मानव, तू इस शरीर रूपी महल में बैठी आत्मा को सुरक्षित रख तथा मन को उस ओर ले जा जहां सकारात्मक के हाथ तेरी ओर बढ़े और तेरी कर्म की जीत को अमर कर दे।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर