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ठंड मत खा जाना, ये गरम नहीं होती

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ठंड मत खा जाना, ये गरम नहीं होती

सबगुरु न्यूज। मौसम अपना प्रमाण खुद देता है, उसे किसी आधार की जरूरत नहीं होती है। ना ही वह किसी बैसाखी के बलबूते अपने को बेदाग बताने का खेल खेलता है। गरमी अपना प्रमाण देती सर्वत्र सूरज की धूप को आग की तरह बरसाती है और जीव जगत को अपना परिचय दे देती है। गर्मी से त्राहि त्राहि करता जीव अपने आप को बचाने के रास्ते ढूंढता है।

तूफानी बरसात भी कुछ यूं ही अपना प्रमाण देती हुई सब कुछ तबाह कर देती है। ठंड भी अपनी शुद्धता का प्रमाण पत्र लेकर नहीं घूमती, आते ही अपना परचम लहरा देती है और जीव जगत को अपना परिचय देती है। लोग कहने लग जाते हैं कि देख़ों ठंड मत खा जाना नहीं तो हमें बतलाना पडेगा कि इस दुनिया में राम राम ही सत्य है।

भरी ठंड में भी शमशान में मुरदों की भीड़ थी। चिताएं जल रही थीं और अपनी गर्म लपटों से आस पास का माहौल गर्म कर रही थी। ठंड से संघर्ष कर रही थी। इसे देख शमशान मुस्कुराते हुए कहने लगे कि हे आग तू अब तक दुनिया को जलाती रही और कभी बुझी तक नहीं। हे आग! आज तुझे भी ठंड खा जाएगी और तेरा प्रमाण राख़ के ढेर में बदल देगी। कुछ ही देर बाद आग तो बुझ गई और मुर्दा जल गया पर उसकी राख व हड्डियों के ढेर ठंडी हवा में अस्त व्यस्त हो गए।

शमशान घाट पर धुनी रमाए बैठा एक फकीर यूं कहने लगा वाह रे परमात्मा! इस शमशान घाट पर दुनिया की हर गरमी को तू ठंडा कर देता है। दुनिया के जीते जी हर प्रमाण को तू ठंड पिला देता है और दिखा देता है कि कौन दागी तथा कौन बेदागी, इन सभी का दाग़ करा देता है। ठंड को रंगत आ जाती है, तेरे मसान में वह आग को भी ठंड पिला जाती है।

जब हड्डियों और राख़ को ढूंढने वाले बेचैन हो गए तथा मौत के प्रमाण पत्र लेकर शमशान में घूमते रहे कि हमारा तो बेदाग था और कोई कहने लगा हमारे वाले को अमुक रोग ने मारा। पर बात नहीं बनी। तब फकीर कहने लगा बाबूजी ये मसान है यहा सब ठंड पी जाते हैं। यहां केवल दाग ही दिए जाते हैं। दागी और बेदागी में अंतर नहीं किया जाता है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव, इस जगत में ऋतुएं तो अपने अनुसार ही काम करती हैं और इसके गुण धर्म को जिसनें नहीं माना उन सब को इन ऋतुओं का मालिक बिना ठंड के मौसम में भी ठंड पिला देता है और उसके अस्तित्व को मिटा देता है।

इसलिए हे मानव, ऋतुएं यह संदेश देती है जीवन के हर कर्म का निर्वहन तू उस कर्म की तासीर के अनुसार ही कर, अन्यथा हर कर्म के साथ की गई मनमानी तूझे ठंड पिला देगी। भले ही तू दुनिया में घूम घूम कर उस कर्म से बचने के उपाय कर या आग में सोने की तरह खरा बनने की कोशिश कर, यह सब कर्म चयन के फल को बदल नहीं पाएंगे और तुझे तेरे मूल कर्म चयन के फल ही मिलेंगे। इसलिए हे मानव तू ठंड मत खा जाना क्योंकि ये फिर से गर्म नहीं होने देती हैं।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर