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आग के अलाव और ठंड के बंटवारे

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आग के अलाव और ठंड के बंटवारे

सबगुरु न्यूज। आग जब जलने लगती है तो वह ठंड को बांटती हुई अपना परचम लहराने लग जाती है। ठंड के साम्राज्य में आग का प्रवेश हो जाता है तो भी अपना सेनापति अलग से स्थापित कर लेती है और अपने सूबों पर अपने ही सूबेदारो को बैठाने लग जाती है और ठंड के सेनापति ओर उसके सूबे के सूबेदारो के सामने अपना वर्चस्व स्थापित करने लग जाती है।

आग के अलाव को देखकर ठंड मुस्करा जाती है और कहती हैं कि अभी मेरा ही साम्राज्य है और आग का तो बचपना है जो शेर की मांद में घुसे जा रही है। आग अति आक्रोशपूर्ण होकर हुंकार भरती है और ठंड के साम्राज्य में आग के अलाव जगह जगह फैलाने लग जाती है और ठंड से पीड़ित जन को राहत पहुंचाने लग जाती हैं।

आग ओर ठंड का यह आमना सामना दोहरी व्यवस्था को स्थापित कर देता है और दोनों ही अपनी-अपनी विजय श्री को भुनवाने में लग जाती हैं। दोनों सेनापतियों के दोनों सूबेदार भी अपनी-अपनी कार्य कुशलता को प्रकट करते हुए आमने-सामने हो जाते हैं मानो एक घर के दो मुखिया और दो प्रशासक बन जाते हैं। अपने अपने वर्चस्व को स्थापित करने लग जाते हैं। ठंड का बंटवारा करती आग ठंड को चुनौती देती है और ठंड भी ठस से मस नहीं होती।

ॠतुकाल बदलने लग जाता है और ठंड और आग अपने हिसाब किताब समेटने लग जाते हैं। ठंड ने अपने अधिकारों से कितनों को ठंड पिला दी ओर कितनों को ठंडे बस्तों में बांध डाला, आग ने कितनों को राहत देकर बचा लिया और उन्हे पुनः स्थापित कर डाला। प्रकृति ऋतुकाल को देखकर कहने लग लग जाती है कि मैं वाद प्रतिवाद दोनों ही को स्थापित करती हूं लेकिन मानव वाद और प्रतिवाद के दो भाग कर देता है। व्यवस्था को चौरंगी बनाकर सबको अलग अलग खेमों में बांट देता है और अपने अपने रूतबे से राज को चलाने लग जाता है।

संतजन कहते हैं कि हे मानव, ठंड की व्यवस्था को चीरती आग पीड़ित जनों को राहत देती है और उन्हें मजबूत बनाती हुई ठंड से मुकाबला करना सिखला देती है। इस मुकाबले में आग और ठंड दो विरोधियों की तरह हो जाती है। दोनों अपनी अपनी इच्छाओं के अनुसार ही अपना कार्य करने लग जाती हैं। आकाश में दो सूरज जब एक साथ उदय हो जाते हैं तो एक का अस्त काल जल्दी हो जाता है और व्यवस्था सिर के बल पर खडी हो जाती हैं, क्योंकि दोनों की संध्या के दो संध्यावन्दन अलग अलग हो जाते हैं और वह ही जयद्रथ वध को करवा देते हैं।

इसलिए हे मानव, ठंड को भी पडने दे और अलाव को भी जलने दे। दोनों का तालमेल उचित मात्रा में ही रहने दे। अन्यथा दोनों के गुण धर्म विरोधी बन कर शरीर की व्यवस्था बिगाड देंगे। इसलिए हे मानव, तू ठंड के साम्राज्य का अहसास कर और अलावा से राहत ले। इन दोनों का बंटवारा मत कर, किसी एक का पक्षधर मत बन।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर