सबगुरु न्यूज। उम्र की मंजिल पर चढते हुए व्यक्ति के जीवन के आखरी पडाव की शाम कब ढल जाएगी इसकी थाह पाना मुश्किल होता है, फिर भी व्यक्ति अपनी मनमानी करते हुए अपने लक्ष्यों की ओर बढता है। येन केन प्रकारेण ढंग से लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपनी सार्वजनिक मान प्रतिष्ठा ओर सम्मान को खो देता है। फिर भी वह अपनी जीत के डंके बजवाने के खेल शुरू कर देता है।
रावण जब अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की ओर बढने लगा तो मानव सभ्यता व संस्कृति को दरकिनार करते हुए अपनी मनमानी करता हुआ श्रीराम की पत्नी सीता जी को धोखे से हरण कर लंका ले गया तथा अशोक वाटिका में रख दिया।
यह सब हाल देखकर रावण की पत्नि मंदोदरी उस रावण को समझाती हुई कहती है कि हे लंकेश तुमने अखिल ब्रह्मांड में अपनी कीर्ति की पताका लहरा दी है लेकिन सीता जी का हरण कर अपना मान गंवा दिया। तुम्हारी वीरता, ज्ञान, यश और वैभव ये सब अपयश के अधिकारी हो गए। तुमने बहुत कुछ खो दिया है। अब तुम होश में आओ और अपनी ईज्जत बचाने के लिए श्रीराम को उनकी पत्नी लौटाकर माफी मांग लो। नहीं तो यह लंका और उसका यश तथा तुम इन सब का पतन हो जाएगा। अब भी संभल जाओ, कुछ इच्छाओं को मारों नहीं तो अब तुम्हारा सब कुछ बिगड़ जाएगा।
अहंकार, बैर और बदले की आग में जलता व्यक्ति जब अपने परवान पर होता है तो वह मनमानी करता हुआ महादैत्य की भूमिका को अपना लेता है। सर्वत्र अपने ही नाम का जाप और जयकारे लगवाता हुआ हिरण्यकषिपु बन जाता है। नेक और सत्य की राह पर चलते हुए भक्त प्रह्लाद जैसे लोगों का येन केन प्रकारेण से नाश करने पर ऊतारू हो जाता है। सब कुछ जुल्म ढाने के बाद भी वह जब असफल होने लगता है तो फ़िर अंतिम प्रहार करते हुए खुद अपने आखरी अस्त्र शस्त्र को उठाकर वार करने लग जाता है, वह भूल जाता है कि अब उसके बल के पेनेपन पर ग्रहण लग चुका है।
अहंकारी का अहंकार विषहीन सांप की तरह हो जाता है फिर भी वह फुफकारता रहता है। वह शह और मात का खेल खेलने लग जाता है। लेकिन वक्त उसे संभलने का अवसर नहीं देता और चाल चलने के पहले ही नृसिंह अवतार बनकर कुदरत उस पर टूट पड़ती है। उसके पासे उल्टे पड जाते हैं और शह और मात खेल में उसे चौसर के मैदान से भागना पडता है। मैदान के बाहर उसे एक फकीर मिला, वह उसे यूं कहने लगा
हे मानव तू अपने अहंकार वश दिनों दिन क्यों अपना पतन किए जा रहा है। तू इस दुनिया में पहला व्यक्ति नहीं है जो अहंकार के गहनों की माला गले में डाले घूम रहा है। इस दुनिया में हजारों लाखों अहंकारी आए और जीव जगत को मुसीबत में डालते रहे लेकिन काल ने उन सब का अंत कर डाला, उनके मन की योजनाएं धरी ही रह गईं।
देवराज इंद्र को अहंकार वश कई बार स्वर्ग की सत्ता से वंचित रहना पडा तो दशानन को भी भितरघात ने मरवा डाला। कंस को अपने ही रिश्तों ने मार डाला तो महाभारत के अहंकारी भी अपनों के हाथो से ही मर गए।
संतजन कहते हैं कि हे मानव, व्यक्ति ईर्ष्या, जलन, बैर, बदले की भावना को दिल से नहीं निकालता है तो उसकी हर जीत थोडे ही दिनों के बाद औंधे मुंह गिर जाती हैं और वह सब जीतने के बाद भी सब कुछ हार जाता है।
इसलिए हे मानव, तू केवल बैर बदला लेने की अपनी इच्छाओं का ही विकास मतकर वरन क्या उचित है और क्या अनुचित इसके मापदंडों को तू अपने ही चश्मों से मत देख। क्योंकि तेरे चश्मे केवल पक्ष और विपक्ष को ही देखेंगे कि कौन मेरे पक्ष में है। कई बार अपने चश्मे से देखे जाने वाले विपक्षी भी सार्वजनिक तथा सबके लिए ही होते हैं। अपने पक्षधर भी दूसरे के लिए ही कार्य करते हैं। इसलिए हे मानव तू किसी को भी अपना चेहरा मत मान और शेष बचे जीवन को भ्रम में मत पाल।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर