सबगुरु न्यूज। सदियों से बल और बुद्धि की यही गणित रही है कि बुद्धि बल के आगे मोहताज हो जाती है भले ही वह अपना प्रसार आकाश तक कर ले या पाताल की तह तक पहुंच जाएं। बिना साधन और मंच के वह सड़कों पर अपनी कला दिखा कर दया की भीख मांगती है और अपना पेट पालती हैं।
आज भी हजारों लाखों लोग ऐसे लोग हैं जो अपनी बुद्धि, ज्ञान और कला का प्रदर्शन गलियों, सड़कों और सांस्कृतिक धरोहरों के बाहर बैठ कर दिखाते हैं और अपना पेट पालते हैं। इससे अपने कुनबे की परवरिश करते हैं तथा अपनी इस विद्या व ज्ञान का हस्तांतरण अपनी पीढ़ी को करते हैं। बुद्धि, ज्ञान और कला के इसी मानव को उसकी इन्हीं परिस्थितियों के कारण जमाना उसे कमजोर करार देता है।
बल बिन बुद्धि बापडी का मानव और उनका जीवन सदा सशक्त और बलधारी ज्ञान का मानव जो इस क्षेत्र का एक प्रतिष्ठित पुरोधा होता है वह उसे लोप कर देंता है। उसी की विद्या ज्ञान की नक़ल को अपने नाम से पंजीकृत करवा लेता है तथा कमजोर व्यक्ति का ज्ञान दूसरों की शोध का प्रमाण पत्र बन जाता है।
अनुवादक, विश्लेषक और मनोवैज्ञानिक तथा प्रशासक बना तथा किसी भी क्षेत्र की विचारधारा से जुडा व्यक्ति इन सब स्थितियों ओर परिस्थितियों का प्रस्तुतीकरण करता है तो वह बलहीन बुद्धि के कलाकार को मनोरोग की उपाधि भेंट कर देता है और अपने ज्ञान की महानता को प्रकट कर देता है।
सदियों से आज तक ऐसा ही होता आया है कि हम जिसके उत्पादक होते हैं उसका पेटेंट किसी ओर के नाम होता है। गांव ढाणी शहर गांव गली मोहल्ले में ज्ञान कला और विज्ञान तकनीक और धर्म के प्रचार का पुरोधा अपनी कला दिखा कर पेट पालता है और इन सब का प्रतिष्ठा धारी बल ही अपनी इच्छा से स्थापित करता है।
बिना बल के बुद्धि केवल महाशक्ति शाली की जाजम बिछाने तक ही सीमित रह जाती है और जिस पर बैठ कर शक्ति मान राज करता है।
संतजन कहते है कि हे मानव, बुद्धि और कला, बल के बिना अपाहिज ही रहती हैं और वह अपनी परवरिश करने के लिए सदा बलवान लोगों पर ही मोहताज रहती है। अगर ऐसा नहीं होता तो हर गली मोहल्ले गांव ढाणी मजरे से हजारों लाखों बुद्धिमान और कलाकार उभर कर निकल जाते जो इस धरती को सदा दुनिया में विश्व गुरु ही बना कर रखते। आज भी इन सब की कमी नहीं है भले ही उनकी ज्ञान व कला को केवल अपनी ओर अपनो की ही परवरिश करने के लिए गुजर बसर कर रही है।
इसलिए हे मानव, तू भले ही बलहीन है फिर भी अपनी बुद्धि ओर कला को संजोये रख और इसे संवर्धित ओर संरक्षित करता रह क्योंकि तेरी कला और ज्ञान ही भविष्य का आविष्कार बनेगी। तेरे ज्ञान और कला की लघु संस्कृति ही सदा उस विशाल सभ्यता व संस्कृति में एक वृहत संस्कृति बनती आई है और बनती रहेगी।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर