सबगुरु न्यूज। हीरे के बहम में व्यक्ति जब कांच के खिलौने ले आता है तो वह बहुत प्रसन्न होता है कि इनको घर में सजाया जाएगा तो उस घर की शोभा बढ जाएगी। रात के अंधेरे में भी ये जुगनु की तरह दिखते रहेंगे और चमकते रहेंगे। इस उम्मीद में व्यक्ति आपने घर मे संध्या होने के आगज के बाद “दिया” भी नहीं जलाता ओर सोचता है कि हीरे के खिलौने से ही ऊजाला हो जाएगा।
रात के पहले पहर में जब वह अपने मकान में घुसता है और देखता है कि वहां पर अंधेरा ही है। तब हिम्मत करके अंधेरे में ही खिलौने को ढूंढने के लिए टटोल कर देखता है तो कुछ खिलौने उसके हाथ गिर कर उछल जाते हैं और टूट कर टुकड़े टुकड़े हो जाते हैं। तब उसे समझ में आ जाता है कि ये खिलौने हीरे के नहीं कांच के थे।
नैतिक चरित्र वह मूल्यवान हीरा होता है जो हीरे से भी ज्यादा कठोर होता है और उसकी पहचान केवल उसके व्यवहार से ही जानी जा सकती है। चरित्र नैतिक मूल्यों पर आधारित होता है शारीरिक गुणों से नहीं। सत्य निष्ठा, ईमानदारी, कार्य परायणता, आचार विचार, नियम व्यवहार, प्रतिमान उसकी मौलिक संस्कृति ये सब उसके नैतिक मूल्यों को निर्धारित करतीं हैं, इन्हीं कसौटी पर नैतिक चरित्र आधारित होता है।
जीवन के कई रिश्ते और व्यवहार कांच के खिलौने की तरह हिफाज़त से रखने पड़ते हैं, नहीं तो इनका अस्तित्व कांच के खिलौने की तरह ही हो जाता है, वे उछाल दिए जाएं तो टूट कर बिखर जाते हैं।
संत जन कहते हैं कि हे मानव, हीरे की तरह दिखने वाले इन कांच के खिलौने की तरह के व्यक्तितव को अपनी जगह पर ही नुमाईश की तरह रहने दो क्योंकि जीवन में कई उतार चढ़ाव में यह कामयाब नहीं हो सकते ना ही ये व्यवहार में ज्यादा अपनाए जा सकते हैं।
इसलिए हे मानव, कबीला पालने के लिए माटी के भांडे ही कामयाब होते हैं और उछालने पर टूट भी जाए तो इन्हें आसानी से बदला जा सकता है। कबीले को आसानी से पाला जा सकता है। आग की आंच पर चढ़ने से ये खरे हो जाते हैं जबकि कांच के भांडे आंच लगते ही बिखर जातें हैं।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर