सबगुरु न्यूज। प्रकृति एक श्रेष्ठ शासक और प्रशासक की प्रस्थिति व उसकी भूमिका का निर्वाह कर अपने कार्यो को अंजाम देती है। सर्दी के मौसम में वह गर्मी के तराने नहीं गाती ओर जग हितैषी बनने का चोला ओढ़कर अपनी भूमिका से नीचे उतरकर अपने ओहदे की गरिमा के कर्तव्य व दायित्वों को कमजोर नहीं करतीं। भले ही लाखों लोग ठंड से मुकाबला करते रहें, लेकिन वह आग के अलाव जलाने की हिदायत नहीं देती।
मानव कमजोरियों का पुतला और परिस्थितियों का गुलाम होता है। वह अपने पद, प्रतिष्ठा और सम्मान को बचाए रखने के लिए हर बार अपने प्रदत्त अधिकार और उसकी भूमिका का निर्वाह मानवीय शासन व प्रशासन के नजरिए के ही अनुसार करता है। ऐसे में वह अपने मौलिक गुणों को खो देता है। सार्वभौमिक सत्य सिद्धांतो को छोड़कर हकीकत से नीचे उतर जाता है तथा सलाहकार और विश्लेषक की भूमिका का पालन करने लगता है। यानी जैसा देश वैसा भेष बनने की कहावत में लग जाता है। इससे हटकर जो व्यक्ति अपने प्रदत्त अधिकार निर्वाह अपनी भूमिका के अनुसार करता है तो वह भूमिका संघर्ष के जंग में फंस जाता है और उसकी श्रेष्ठता दफन कर दी जाती है।
बदलते मौसम व ऋतुओं के शासन ओर प्रशासन अपनी मौलिकता बनाए रखते हैं और अपने राज में उपजने वाले खाद्यान्न और वनस्पति उत्पादन की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने की कवायद करते हैं, बाद में भले ही ऋतु शासन बदल जाए तो भी उत्पादन को बदलने वाली ऋतु और पौष्टिक बना उसे मज़बूती देती है, उस फसल को बर्बाद नहीं होने देती। इन्हें बर्बाद तो अपने अधिकारों का दुरुपयोग करतीं हुईं बेमौसमी ऋतु कर जाती है।
संतजन कहते हैं कि हे मानव, इस जगत का निर्माण करने वाला परम शक्तिशाली है और वह सारे जगत का रखवाला होता है, जो सदा कालचक्र को आगे बढाता हुआ जगत की स्थितियों तथा परिस्थितियों को लगातार बदलता रहता है और मानव को सुखी ओर समृद्ध बनाए रखता है। क्योंकि वो श्रेष्ठ शासक और प्रशासक की भूमिका का निर्वाह समदर्शी होकर ही करता है।
इसलिए हे मानव, अनुमान, पूर्वानुमान, भविष्यवाणियां तो मानव की एक जिज्ञासा होती हैं जो मानव को आने वाले परिवर्तन के संकेत मात्र देती है, उसे कमजोर नहीं स्थितियों व परिस्थितियों से मुकाबला करने के लिए मजबूत बनाती है। इसलिएतू केवल अपने कर्म पर विश्वास कर और फल की इच्छा मत कर क्योंकि इस जगत को जगत का बनाने वाला ही चलाता है, मानव तो मात्र एक कठपुतली ही होता है।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर