सबगुरु न्यूज। शरीर व्याधियों का घर होता है और बहुत सारी व्याधियां मिल कर रोग के रूप में शरीर को घेर लेती है और अंत में मौत उसके सामने खडी हो जाती है और व्यक्ति को यह अहसास हो जाता है कि अब वह इस दुनिया में ज्यादा नहीं ठहर सकता है तो वह परमात्मा से कहता है कि इन सब रोगों ने मुझे घेर लिया है और मौत मुझे लेने आ गई है। हे परमेश्वर ये सब मिलकर तेरे द्वारा बख्शे गए शरीर को लूट कसोट लेगे और मेरा घर बर्बाद हो जाएगा।
इसलिए तू दया कर परमेश्वर क्योंकि ये सब तेरे खिलाफ संगठित होकर मुझे मार रहे हैं। मौत ये सब नजारा देखती रही ओर शरीर को अपने आगोश में लेने के लिए आगे बढ़ने लगी तो व्यक्ति मौत के सामने गिडगिडाने लगा कि तू रहम कर ओर एक बार मुझे जीवन बखश ताकि मेरी बनाई व्यवस्था में अराजकता पैदा ना हो जाए।
मौत कुछ ना बोली और काल चक्र कहने लगा कि हे मानव सदियों से राजा रंक और सभी यही कहते आ रहे हैं लेकिन सुनो व्यवस्थाएं तो सदा बहार चलती रहती है और व्यक्ति के आने जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता है सतयुग से आज कलियुग तक सदा ऐसा ही होता है। तुम स्वयं जिम्मेदार हो शरीर में बढते इन रोग रूपी शत्रुओं से जो तुम्हारा अस्तित्व मिटा देना चाहते हैं।
यह युद्ध इन रोग रूपी शत्रुओं से तुम्हारा है और तुम अपने आप को बचाने के लिए इन सब को परमात्मा का शत्रु बता रहे हो और मोत का युद्ध परमात्मा से करवाना चाह रहे हो।
यह कहते कहते कालचक्र आगे बढ गया और व्यक्ति अपनी ही मनमानी व अहंकारी प्रवृति से बनाए गए रोग रूपी शत्रुओं के जाल में फंस गया तथा मौत के सामने गिडगिडाता ही रह गया पर मौत उस पर मेहरबान ना हो सकी। गुलाबी रंग में डूबा हुआ व्यक्ति यह भूल जाता है कि एक दिन ये दिन ये सुख चैन राज पाट सभी गुलाबी रंग की तरह उड जाएंगे और व्यक्ति का अहंकार ओर घमंड सब कुछ मिट्टी में मिल जाएगा।
संतजन कहते हैं कि हे मानव, गिडगिडाने से मौत मेहरबान नहीं होती क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। सदियों से आज तक यह क्रम जारी है और किसी एक को अन्तिम विकल्प के रूप में प्रकृति ने नहीं माना ओर लगातार हर बार नया व्यक्ति ओर नई व्यवस्थाएं बनती जा रही है और विश्व की सभ्यता और संस्कृतिया लगातार विकास की ओर बढ़ती जा रही है। किसी व्यक्ति विशेष ओर व्यवस्था विशेष पर प्रकृति निर्भर नहीं रही।
इसलिए हे मानव, कोई भी व्यक्ति अगर इस जगत से चला जाता है तो सृष्टि का अंत नहीं होता। प्रकृति में कोई भी व्यक्ति अंतिम विकल्प के रूप में नहीं होता है। प्रकृति स्वयं विकल्प तैयार कर लेती है। इसलिए हे मानव, तू वर्तमान की सोच ओर अपने कर्म को मिसाल बना छोड़ ताकि तेरे जाने के बाद तेरी स्मृतियों को सदा याद करेंगे।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर