Warning: Constant WP_MEMORY_LIMIT already defined in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/18-22/wp-config.php on line 46
hindu mythology stories by joganiya dham pushkar-'राम रत्न' धन पायो, जीवन सफल बनायो - Sabguru News
होम Breaking ‘राम रत्न’ धन पायो, जीवन सफल बनायो

‘राम रत्न’ धन पायो, जीवन सफल बनायो

0
‘राम रत्न’ धन पायो, जीवन सफल बनायो

सबगुरु न्यूज। थाली में सजाकर हर रत्न को तोहफे में बांटना बडा आसान होता है क्योंकि वह बांटने वाले की मेहरबानी पर ही निर्भर करता है कि यह तोहफा किसे और क्यो दिय़ा जाए।

प्रतिस्पर्धा के तोहफे तो योग्यता पर आधारित होते हैं पर कई तोहफे योगदान उपस्थिति और अपनी हैसियत व दूसरों पर दया भाव दिखाने या इन तोहफे से हमें क्या लाभ मिलने वाले हैं इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए कुशल रणनीतिकार बांटता है पर इस दुनिया के श्रेष्ठतम तोहफे राम रत्न धन को बांटना आसान नहीं होता है।

राम रत्न धन के तोहफे तो वही बांट सकता है जो अभौतिक जमीन पर खडा हो तथा लेने वाला भी उस जमीन पर पांव रखने के लिए लालायित हो। अन्यथा ये तोहफे आकाश के तारों की तरह आदर्श ही बनकर रह जाते हैं।

कहा जाता है कि “राम रत्न” धन का तोहफा मन के हर विकारों से दूर होता है और जहां त्याग, समानता, कल्याण, अपनापन, दया और हम की भावना के कुएं, बाबडी खुदे हुए हों और उसमें स्वच्छ विचारों का निर्मल नीर बह रहा हो, जहां हर चाहने वाला इसमे कूदकर नहाने के लिए लालायित हो।

इन्हें राम रत्न धन के तोहफे स्वत: ही मिल जाते हैं और बांटने वाला और उसकी मंशा दिखाई नहीं देती है, तोहफा लेने वाला भी धन्य हो जाता है क्योंकि यह तोहफा देने वाला और लेने वाला दोनों ही अपने अपने हित नहीं साधते वरन् इस जगत के अंतिम सत्य को स्वीकार कर धन्य हो जाते हैं।

भौतिक द्वंदवाद की दुनिया में उलझे भौतिक मानव को भौतिक उन्नति से ही इस दुनिया में भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है और वह इन सब भौतिक सुख साधनों का इस्तेमाल करता है और इन्हें संरक्षित व सुरक्षित रखना चाहता है और इसी धन से वह अपने आप को सुखी ओर समृद्ध बनाएं रखना चाहता है ताकि आने वाली पीढियों में उन की यादगार बनी रहे और सुखी व समृद्ध रहे। इसी सोच में जीवन गुजर जाता है और अभोतिक संपति से उसकी दूरी हो जातीं हैं।

अभौतिक संस्कृति की संपत्ति भौतिक जगत से कोसों दूर होती है। इस संस्कृति में त्याग, तपस्या, बलिदान और जन कल्याण ही मानव के लिए सबसे बडे सुख माने गए हैं और ये जीवन की वास्तविक झांकी के दर्शन कराते हैं और बताते हैं हे मानव! सब कुछ इस दुनिया में ही छोड़ कर जाना है तो जीवन को अनावश्यक झमेलो में डालकर क्यों।

भौतिक सुखों के लिए अति को धारण करता है और विपथगामी व्व्यवहार को धारण कर मानव के मूल्यों के संग खिलवाड़ करता है। संयमित व सत्य के मार्ग पर चल कर क्यों नहीं भौतिकता की चूनर ओढ़ता है। भौतिक समृद्ध होने के लिए और अपने सपनें साधने के लिए क्यों छल कपट और मायाजाल में अपने को अनेकों रूप मे प्रस्तुत करता है और अपने आप को बलि और महान बताने के खेल को खेलता है।

संतजन कहते हैं कि हे मानव, राम रतन धन के तोहफे पाने के लिए मानव को सबसे पहले इस जगत में मानव के मूल्यों को ही जानना जरूरी है। मानव के मूल्यों को दरकिनार करते हुए अपने आप को महामानव घोषित करना बहुत आसान होता है, लेकिन महामानव की भूमिका का निर्वाह करना आसान नहीं होता है।

महामानव बनने के लिए ज्ञान, कर्म और भक्ति के उपदेश देना तथा उन्हें निभाना ही जरूरी होता है और भौतिक संस्कृति का मानव यह तभी कर सकता है जब उसे सब कुछ छोड़कर केवल और केवल सारथी बन कर रहने की भावना हो और सभी भोतिक सुखों से दूरी बनाए रखने का मन हो।

इसलिए हे मानव दुनिया के हर तोहफे येन केन प्रकारेण मिल सकते हैं लेकिन राम रतन धन का तोहफा तो स्वंय को ही अपने त्याग तपस्या बलिदान ओर जन कल्याण के श्रम से प्राप्त करना पड़ता है जो पीढियां दर चलता हुआ आस्था के ठिकाने बना कर पूजवा देता है जहां भ्राौतिकता के रत्नों को चाहने वाला मन्नतो के धागे बांधता हैं।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर