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सच के पीछे वे झूठ के साये थे

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सच के पीछे वे झूठ के साये थे

सबगुरु न्यूज। अपनी विजय से वह बहुत खुश था और सोचने लगा की अब मैं एक अजेय शासक हूं। इस दुनिया को मैने जीत लिया है और यही सोचते हुए वह दूसरे दिन रण के मैदान में गया जहां पर एक दिन पूर्व ही उसने विजय प्राप्त की थी और अपनी शत्रु सेना का समूल नाश कर दिया था। लाखों सैनिक मर चुके थे और कुछ अपने जीवन की अंतिम सांस ले रहे थे। अपार लाशों में से कुछ के परिजन अपने अपने लोगों के शवों को अंतिम संस्कार के लिए ढूंढ रहे थे।

चील कोए और गिद्धों के लिए दिन अच्छे आ गए थे और वह अपनी अपनी स्वरूचिनुसार लाशों को नोच नोच कर खा रहे थे और किसी की जीत का वे आनंद उत्सव मना रहे थे। उस युद्ध में जो मर ना पाए थे लेकिन घायल हो कर तडप रहे थे वहां एक संन्यासी अपने कुछ शिष्यों के साथ उनके उपचार में जुटा हुआ था। यह सब देखकर उस विजेता राजा ने कहा कि हे संन्यासी तुम ये सब कुछ क्या कर रहे हो। इन सब को मैंने ही युद्ध में परास्त किया था।

संन्यासी बोला हे राजन, अब तुम्हारा काम तो खत्म हो चुका है और तुमने जो कुछ भी किया है उसका परिणाम इस जमीन पर देख लो। अब हमारा काम शुरू हो गया है कि जो मानव बचे हुए हैं और मर नहीं पाए उनका हम उपचार कर रहे हैं और इन्हें जिन्दा रखने के प्रयास कर रहे हैं ताकि ये समझ सके कि हम सब झूठ के साये थे। जिस जीवन को हम सच समझ बैठते हैं लेकिन वो झूठ का एक बेमिसाल सुन्दर साया है। राजा बोला क्या मैं भी झूठ का साया हूं।

संन्यासी मुसकुराते हुए कहने लगा राजन इसमें संदेह नहीं कि आप भी सच के पीछे झूठ के साये हो। जो स्वयं एक एक झूठ थी उस पर विजय करके आपने झूठ का गाढा लेप लगा दिया।

संन्यासी की बात सुनकर राजा बोला मुझे कोई परास्त नहीं कर सकता है और मैं सदा अजेय ही रहूंगा। संन्यासी बोला हे राजन, एक दिन तुम्हे मौत परास्त कर देगी ओर तुम्हारे अजेय रहने का अभिमान तोड़ देगी। कोई दूसरा राजा बन जाएगा तथा सच के पीछे झूठ के साये की तरह ही व​ह अपने जीवन का सफर पूरा कर जाएगा।

राजा को सब कुछ समझ आ गया और वह बोला हे संन्यासी फिर सच क्या है। मुस्कराते हुए संन्यासी ने कहा कि राजन इस दुनिया में सभी नश्वर हैं और उनका नाश होना निश्चित है, लेकिन मानव द्वारा बनाईं गई संस्कृति पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है और इस संस्कृति के दोनों ही पक्ष भौतिक और अभौतिक जन कल्याणर्थ होती है। संसार रूपी रेन बसेरे में आए मानव के लिए हितकारी होती हुई संस्कृति झूठ के पीछे सच का साया होती है। यही सच इस दुनिया में रह जाता है और रेनबसेरो में आया मानव चला जाता है।

संतजन कहते हैं कि हे मानव, संसार में सच केवल मानव का आचार, विचार, रहन, सहन, खान पान, मान्यता, श्रद्धा, विश्वास, व्यवहार, मूल्य और प्रतिमान आदि होते हैं जो मृत्यु के बाद भी व्यक्ति की पहचान छोड़ कर चले जाते हैं। मानव सभ्यता और संस्कृति जिन्हें अच्छे या बुरे काम के कारण याद रखतीं है और भौतिक विकास जो जन कल्याण के लिए होते हैं वे सदा सभ्यता और संस्कृति को आगे बढाने में सहायक होते हैं।जबकि इनको बनाने वाला मानव सच दिखता हुआ भी झूठ का साया बन कर काल में समा जाता है और स्मृति शेष ही रह जाते हैं।

इसलिए हे मानव ये जीवन सच नहीं झूठ का साया है। इस जगत में केवल परमार्थ रूपी सत्य ही रहता है, इसलिए झूठ, कपट और पाखंड के मायाजाल से बच। भले ही दुनिया में तेरा योगदान शून्य हो। केवल अपने को स्थापित करने के लिए मायाजाल की दुनिया का निर्माण मत कर और एक झूठ को अनेकों झूठो में प्रस्तुत मत कर।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर