सबगुरु न्यूज। सकारात्मक सोच को रखना मानना और उसे व्यवहार में लाना यह सब कहने तक ही सुन्दर लगता है। जब अपने अस्तित्व का वजूद दिखाने का संग्राम छिड़ जाता है तो हर बडा और छोटा अपना शक्ति प्रदर्शन करने लगता है। इस दौरान उन गुनाहों को अंजाम देता है जो मानव धर्म और प्रकृति के न्याय सिद्धांतों के विरूद्ध होते हैं। इस शक्ति प्रदर्शन में सकारात्मक सोच रखने का दर्शन सिर के बल पर खडा हो जाता है।
अपने अस्तित्व को बचाने के लिए छल, कपट और अनीति अपने नकारात्मक संसार को लेकर उस संग्राम को एक महायुद्ध में बदल देते हैं और देखते ही देखते वहां अवगुणों की खान प्रकट हो जाती है जिससे तरह तरह के गुनाह रूपी नकारात्मक रत्न निकलने लग जाते हैं तथा वहां पर सब कुछ विषैला हो जाता है।
महाभारत युग में जब पांडव चौपड पांसे के खेल में हार गए तो तो उस राजसभा में द्रोपदी का चीरहरण किया गया और वहां न्याय रूपी धर्म खामोश था तो रक्षा रूपी राजा अंधा। वही संरक्षक बने गुरू और कुलगरू अपने को बन्धन में बंधे होने की दुहाई देते रहे और सारे वीर दुर्बल बन कर चीरहरण को देखते रहे। द्रोपदी के हितैषी बने लोग लज्जा से सर झुका कर बैठे हुए थे।
ऐसे नकारात्मक माहौल में सत्य चीखता रहा ओर अंत में बगावत पर उतर गया। इनमें से काश एक की भी सकारात्मक सोच अनीति का विरोध नहीं कर सकी और उसका अंतिम परिणाम महाभारत का युद्ध बना।
नकारात्मक सोच अंतिम परिणाम में गुप्त रहस्यों को खोल देती है और सारा भेद खुल जाता है कि चौसर किस की थी, पांसे किसने बनाए ओर कौन पांसे फेंक कर सब कुछ जीतना चाहता है। यह सोच अंत में सब कुछ जीतने के बाद भी सब कुछ हार जाती है और जिन हितों को साधने के लिए यह खेल खेला गया था वह हित धराशायी हो कर मिट्टी में मिल जाते हैं। हर गुनाह का प्रमाण अपने ही दिल में कैद रहता है। भले ही हम दबे मन से सत्य, अहिंसा, त्याग और बलिदान के झंडे बाहर लहराते रहे और हम एक है के तराने गाते रहे।
एक पौराणिक कथा में बताया गया है कि देवराज इन्द्र को ब्रह्म हत्या के दोष से स्वर्ग के सिंहासन से वंचित होना पड़ा और राज सिंहासन सभी को खाली होकर बुलाने लगा लेकिन कोई भी योग्य व्यक्ति देव और दानव नहीं मिला। ऐसे में त्रिदेवों ने पृथ्वी पर राज करने वाले मानव की ओर देखा।
उस राज़ सिंहासन को पाने के लिए सभी शक्तियां प्रकृति की अदृशय शक्ति के सामने गिडगिडा रही थीं और कह रही थी कि हमारे सारे गुनाह माफ कर देना क्योंकि हम सब अवगुणों की खान हैं और गुनाहों से ऐसे भरे हैं कि हम कुछ कह नहीं सकते लेकिन हमें भरोसा है कि हे शक्ति के अदृश्य देव तुम हमे माफ कर देगी।
तब एक आकाशवाणी हुई की हे प्राणियों हार जीत तो देव अर्थात अज्ञात शक्ति के अदृश्य देव के हाथ में होती है वह क्या करना चाहती है ये तो समय आने पर ही ज्ञात हो सकेगा कौन स्वर्ग के सिंहासन पर आसीन होगा भले ही तू चाहे अनुनय-विनय कर ले या कोई भी खेल को खेल ले।
संत जन कहते हैं कि हे मानव, इस जगत से जाता हुआ मानव जब समझ जाता है कि अब कोई भी कर्म नहीं बचा सकता है तो वह अंतिम रूप से अदृश्य शक्ति के अदृश्य देव को मन में हाजिर रख अपने सभी गुनाहों को माफ़ करने की माफ़ी मांगता है लेकिन प्रकृति की शक्ति उसमे नई प्राण वायु रूपी ऊर्जा नहीं भरती।
इसलिए हे मानव, यह शरीर सदा गुनाहों से भरा रहता है और लोभ, लालच और स्वार्थ, घृणा नफ़रत, क्रोध, ईर्ष्या जलन यही सब मिलकर पाप और काल को आमंत्रित करते हैं। इसलिए हे मानव इन मुसीबतों में पडने से पूर्व दया और क्षमा को दिल में स्थान दे ताकि दिल में दया से मानवधर्म का उदय हो ओर क्षमा से परमात्मा प्रकट होकर तेरे गुनाहो को माफ़ कर दे ओर जीवन सफल हो जाएगा।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर