Warning: Constant WP_MEMORY_LIMIT already defined in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/18-22/wp-config.php on line 46
hindu mythology stories by joganiya dham pushkar-मन के बंसत पर सर्द हवा की दस्तक - Sabguru News
होम Latest news मन के बंसत पर सर्द हवा की दस्तक

मन के बंसत पर सर्द हवा की दस्तक

0
मन के बंसत पर सर्द हवा की दस्तक

सबगुरु न्यूज। सर्द हवाओ के बीच कांपता हुआ बसंत आ गया और सोचने लगा मंजिल अभी दूर है, मेरे लक्ष्यों के भेदन की। सभी ओर नव यौवन लिए बंसत के फूल तो मुस्करा रहे हैं पर उन्हें यह ज्ञान हो गया है कि सर्द हवाओं ने बंसत के भेद खोल दिए हैं और बंसत सहमा हुआ है तथा ऋतुराज बनने के लिए बैचेन हो रहा है।

मन के बसंत पर जब आफत रूपी सर्द हवाएं प्रहार करने के लिए दस्तक देने लग जाती है तो मन आफत रूपी सर्द हवाओ को कोसने लग जाता है और कहने लगता है कि अब तक तुमने सब कुछ तबाह कर डाला और अब मुझे भी आगे बढने से रोक रहे हो।

तब आफत रूपी सर्द हवाएं कहती हैं कि हे बंसत जहां तुम खडे होकर मुझे कोस रहे हो वह स्थान भी मेरा ही है, तुम्हारा तो नया अभी कुछ भी नहीं है। गर्मी की गुलामी का सीना मैंने ही चीरा है और आशा के सागर को बहते हुए बचाने के लिए मैने ही उसे बर्फ में तब्दील कर दिया है। मेरे यह कर्म ना होते तो हे बसंत तुमको जलाने वाली गरमी आने ही नहीं देती और सदा तुम्हें गुलामी के अंधेरे में ही रखतीं।

संत जन कहते हैं कि मन की इच्छाओं की पूर्ति के बसंत को जब हालातों के थपेडों से गुजरना पड़ता है तो ऐसा लगता है कि बंसत को जुकाम लग गया है और छींके अपशगुन की आ रही है तथा वक्त कह रहा है कि “बंसत” का आनंद एक सपना ही बना हुआ है।

इसलिए हे मानव, मन की हर इच्छाओं की पूर्ति का होना सदा जरूरी नहीं होता, इसलिए मन की परेशानी से दूर हट और शरीर में बैठी प्राण वायु रूपी ऊर्जा जिसे आत्मा कहा जाता है उस ओर देख, वह सदा आनंद के बंसत मनाती हैं। हर चिंता परेशानियों के लिए बने मोह से दूर रहती है। इसलिए तू मन के आंगन पर परेशानी रूपी सर्द हवा की दस्तक से डर मत और एहतियात रख कभी तो बंसत आएगी।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर