सबगुरु न्यूज। महाभारत काल की घटना थी। कौरवो ने पांडवों के मरवाने की योजना बनाई। एक लाक्षा गृह का निर्माण करवाया तथा पांडवों को उसमें ठहराकर लाक्षा गृह मे आग लगवा दी। देखते ही लाक्षा गृह जल कर राख हो गया। कौरव खुश हो गए कि पांडवों का अंत हो गया। कुछ समय बाद कौरवों को मालूम पडा कि सभी पांडव जीवित है तो उन्हें आश्चर्य हुआ। कौरवो को फिर पता चला कि हमारी योजना फलीभूत नहीं हो पाई क्योंकि हमारी योजना एक दूसरे के ही विश्वास पर आधारित थी और हम व्यवस्था व निगरानी को बखूबी से अंजाम नहीं दे पाए इस कारण असफल हो गए।
पांडवों को भी भान नहीं था कि हम जहां पर ठहरे थे वहां हमें धोखे से मार दिया जाएगा। लेकिन वक्त और हालातों ने पांडवों को एक विश्वास पात्र दिया। उसने उस लाक्षा गृह में पहले से ही एक सुरंग खोद डाली और लाक्षा गृह जलते ही उसने पांडवों को सुरंग के रास्ते बाहर निकल दिया, पांडव बच गए। कहानी पूरी व्यवस्था निगरानी और वफादार पर ही ठहर गई। वफादार ने व्यवस्था और निगरानी को मात दे दी।
वफादार अपनों का हो या परायों का लेकिन वफादार अपनी भूमिका को बखूबी से अंजाम देता है। निगरानी व व्यवस्था में वे सेंघ लगाकर अपने पक्ष को सफल बना देता है। सजगता ओर मज़बूती तीनों में ही होती है। तीनों ही अपने अपने पक्ष की योजना को सफल बनाने में जुटे रहते हैं लेकिन वफादार अपने हितों को त्याग कर अपने पक्ष के हितों का रखवाला बनकर अपने जीवन को भी दांव पर लगा देता है, इसलिए वह सबको असफल करता हुआ अपने पक्ष को मात नहीं खाने देता है। काश लाक्षा गृह में पांडवो के साथ उनका वफादार ना होता तो फिर महाभारत का युद्ध भी नहीं होता और पांडव लाक्षा गृह मे हीं जल कर मर जाते।
संत जन कहते हैं कि हे मानव, वफादारी तो भूमिका के साथ ही जुडी रहती है। वह किसी भी प्रपंच से पैदा नहीं होती, चाहे वो किसी भी क्षेत्र की भूमिका हो। हर भूमिका का पालन वफादारी से ही निभाने की आवश्यकता है, जो भावी अंजाने अनिष्ट की आशंका को रोक सकती है।
इसलिए हे मानव, अपनी हर भूमिका का पालन वफादारी से कर। यही कर्म भावी अनिष्ट की आशंका को रोक सकता है, अन्यथा व्यवस्था और निगरानी में सेंध लगती ही रहेगी और हम आंसू बहा कर किसी को कोसते ही रह जाएंगे।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर