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कर्म हो सेवा, धर्म हो सेवा

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कर्म हो सेवा, धर्म हो सेवा

सबगुरु न्यूज। जो मानव सेवा का भाव ही इस दुनिया में अपना परचम लहराता है वह यथार्थ की जमीन पर सदा अमर हो जाता है। कर्म और धर्म का मूल मंत्र यदि सीधी सेवा से जुडा होता है तो मिथ्या के गलियारों का अंत हो जाता है। सत्य अपने बौनेपन से निकल कर अपना विशाल रूप धारण कर लेता है और झूठ की लम्बी परछाईयां स्वत: ही लोप हो जाती है।

हर किसी पेचीदगियों से और विवाद से दूर सेवा का भाव विपत्तियों का सामना कर उसे परास्त कर देता है। जीव व जगत के मूल्यों को केवल मात्र सेवा से बचाया जा सकता है।

ध्यान में सेवा का भाव आखों में दया रूपी ऊर्जा को बसा देता है और दिल में छाये हुए घोर अंधेरों को दूर कर देता है तथा ईमान की जोत जलकर सर्वत्र उजाले फैला देता है। दया रूपी यही भक्ति जीव व जगत का कल्याण कर व्यक्ति को परम मोक्ष दिला देती है, भले ही इस नश्वर शरीर का अंत हो जाए पर सेवा की शक्ति उन्हें अमर बना देती है।

जो फूल मुरझा गए हैं उनको गति ओर नया स्वरूप सेवा रूपी कर्म ही देते हैं तथा साथ ही जो फूल खिल नहीं सके हैं उन्हें खिलने की ऊर्जा भी सेवा रूपी कर्म ही देता है। यही मानव धर्म है जो जीवों की सेवाकर परमात्मा की शान बढाता है और फल रूपी संतोष रत्न को पाता है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव यह जगत नश्वर है और छोटे से जीवन में हर नकारात्मक सोच शनैः शनैः आतंक की उस परिभाषा में बदल जाती तथा केवल अपने हितों के लिए विनाश का मार्ग पकड़ लेतीं हैं। इस नाश और विनाश की शुरूआत सबसे पहले घर को अंशात करती है। फिर देश व दुनिया में प्रसार कर विश्व का आतंकवाद बनती है।

इसलिए हे मानव, अपने घर में पनपी रिश्तो में नकारात्मक सोच का तुरंत समाधान कर तथा अपनी सकारात्मक सोच से अपने रिश्तों को सुंदर बना, ताकि घर विवाद के घेरे में ना पडे अन्यथा एक दिन हर रिश्ते अपना आतंकी रूप बना घर परिवार को तोड देगे। सेवा, कर्म और त्याग से इनकी सोच को बदल तथा सुखी व समृद्ध परिवार का निर्माण कर।

किसी व्यक्ति की बढ़ती नकारात्मक सोच को यदि समय पर सजगता, निगरानी व वफादारी की सेवा से दूर कर दी जाएगी तो आतंक कभी भी अपने पांव नहीं प्रसार सकेगा और विश्व में फैला आतंकवाद भी नहीं पनपेगा।

आतंकवाद यदि अपने पांव प्रसार लेता है तो वह जमीन स्तर पर उसी अनुसार उसे जबाब देने की नहीं बल्कि मिटाने की जरूरत है। इसमें भी सकारात्मक सोच और सेवा कर्म ही जरूरी है ना कि प्रपंच। इस कारण हे मानव अपने घर को सदा सकारात्मक ऊर्जा से भर तथा कोई नकारात्मक बनने जा रहा है तो समय पर ही रोक ताकि रिश्तो में कटुता आतंक को ना बढाए और सभी सुखी व समृद्ध रहें। यही सच्चा धर्म है और यही कर्म है तथा यहीपरमात्मा का ठिकाना है।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर