सबगुरु न्यूज। कहर ढाती हुई ठंड की जाजम समटने के लिए फाल्गुन बेताब होकर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराने आ गया है। अपने स्वभाव के अनुसार ठंड ने वही किया जो उसे बेरहमी के साथ करना था। सबको झकझोरते हुए उसने अहसास करा दिया और समझा दिया कि मैं रहम की दुनिया से बहुत दूर हूं। मेरे काल में दया की भीख मांगना व्यर्थ हैं और भले ही यह दुनिया मेरे कहर से जम जाए, मिट जाए। मैं अपने ही गुण धर्म का व्यापार करती हूं। भले ही यह किसी को रास आए या ना आए। यह देख कर प्रकृति मुस्कराने लग गई ओर कहर ढांती ठंड को कहने लगी कि सदा एक बात नहीं होतीं। अति का अंत निश्चित है क्योंकि अनीति का राज कम उम्र काल का होता है। मेरे गुणों में अति का विनाश करना है क्योंकि मुझे ही सदा संतुलन बनाना पडता है।
हे ठंड! फाल्गुन की अब गर्म हवाएं चलने वाली हैं ओर अपने संग हर जगह की मिट्टियां उडाकर तेरे अस्तित्व को मिटाने के लिए आने वाली है। अब तेरे हर हथकंडे धूल में गुम होकर अंधड में उड जाएंगे और तू असहाय होकर अपने ही ठिकाने पहुंच जाएगी। इतने में बसंत ने दस्तक दी और कपकंपाती ठंड की हवाओं को चीरती हुईं साहस तथा धैर्य रख बंसत गुलशन में जा घुसी। गुलशन जो ठंड से जमा था वह जागने लगा और फाल्गुन की गर्म हवा से ठंड को भगाने लगा। बंसत अपना परचम लहराने लगा, कहर ढाती ठंड को दबे पांव खदेडने लगा।
प्रकृति की यह लीला देखकर जीब जगत भी मुस्करा गया और ठंड को पीछे ढकेल वह बंसत के साथ आ गया। कुंभ राशि में प्रवेश से सूर्य की कुंभ संक्रांति ऋतु परिवर्तन की ओर बढने लगी तथा शिशिर ऋतु को पीछे छोड़ आगे बढने लगी। बंसत का परचम हालांकि अभी दूर है लेकिन वह अभी वन उपवन को खिलाने लग गई हैं और फाल्गुन रूपी प्रिय पर फूलों और खुशबू की होली खेलने के लिए अपना बंसत ॠंगार करने में लग गई हैं। बंसत के यह हाल देखकर शिशिर ऋतु चीख़ रही है, चिल्ला रही है और बंसत को कोस रही है कि तू क्यो मेरा ठिकाना छुडवाने पर तुली हुई है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव, प्रकृति ऋतुओं के माध्यम से यह संदेश देती है कि अति चाहे किसी भी क्षेत्र की क्यों ना ही एक दिन उस का भी अंत हो जाता है, भले ही वह कैसे भी बड़े या छोटे हथकंडे अपना ले। जैसे एक ऋतु की अति को दूसरी ऋतु आकार उसका अंत कर देती है और अपना परचम लहरा देती है। यह क्रिया लगातार चलती रहती है। वैसे ही किसी भी क्षेत्र में कोई अति का रूप धारण कर लेता है तो दूसरा सक्षम आकार उसका पतन कर देता है और यही इस जगत का इतिहास रहा है।
इसलिए हे मानव तू मध्यम मार्ग को अपना कर अति से बच और सम भाव से अपने लक्ष्यों को पाने के लिए आगे बढ। बेपरवाह और लापरवाह होकर लक्ष्यों के मार्ग को शिथिल मत कर वरना तेरी ऋतु तुझे फल देने के लिए तरसा देगी।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर