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hindu mythology stories by joganiya dham pushkar-भीलनी के बैर देख मुस्कराए प्रभु श्रीराम - Sabguru News
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भीलनी के बैर देख मुस्कराए प्रभु श्रीराम

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भीलनी के बैर देख मुस्कराए प्रभु श्रीराम

सबगुरु न्यूज। दिन, महीने, साल से संघर्ष करती और मन के फैसले में श्रीराम के दर्शन के लिए अडी हुई भीलनी अपने आप से समझौता ना कर पाईं, हर दिन अपनी कुटिया को फूलों से सजाती रही तथा मनवार के बेर झाड़ियों से तोड़ तोड़ कर लाती रही। उसकी आस्था केवल श्रीराम में थी और अपनी झोपड़ी में श्रीराम को बैठाने में थी।

उसकी आस्था के राम जमीन पर नहीं उसके नयनो में स्थापित थे और मन रूपी मंदिर में वह भावना के दीपक जलाती थी। काल की बेला उसे भले ही थकाती रही पर वहह राम को ढूंढने किसी भी स्थान पर नहीं गई भले ही उसकी उम्र मृत्यु के समणैते की ओर बढ रही थी।

उम्र के समणैते को मृत्यु स्वीकार नहीं करती है और खुद अपने फैसले देकर उम्र का अंत कर देती हैं। भीलनी जीते जी राम के दर्शन करना चाहती थी और एक दिन राम आ गए उसकी ही झोपड़ी में। श्रीराम के दर्शन पाकर नेकी के नहीं अपनी भावनाओं के बेर खुद चख चख कर राम को खिलाने लग गई और श्रीराम उसकी भक्ति भावना से प्रसन्न हो मुस्करा गए।

लक्ष्मण ने देखा कि भीलनी राम को अपने जूठे बेर खिला रही है तो लक्ष्मण राम को कुछ कहने लगे तो राम समझ गए ओर लक्ष्मण को इशारा करके चुप कर दिया। राम चुपचाप भीलनी के जूठे बेर खाते रहे और मुस्कराते रहे।

वहां से आगे निकल कर राम कहने लगे कि हे लक्ष्मण इस जगत में भावनाओं की प्रधानता होती है और जहां भावनाएं निर्दोष होती है वहीं परमेश्वर का निवास होता है। भीलनी की आत्मा ने मेरे मन को श्रद्धा और भाव की चादर से ढंक दिया। परमेश्वर भावों के समझौते से जुड़े होकर जूठे बेर खा सकते हैं और बिना भावनाओं के छपपन भोग भी उन्हें रिझा नहीं सकते।

संत जन कहते हैं कि हे मानव, भीलनी में ज्ञान नहीं प्रेम था और इसी प्रेम वश वह अपने जूठे बेर श्रीराम को खिलाती रही। जहां ज्ञान होता है वहां परमेश्वर को रिझाने के हजारों मार्ग भी भावनाओं को पाने की कला नहीं सिखा सकते। भावनाओं की कला केवल भावनाओं में ही छिपी रहती है जिसमें त्याग के सिवा कुछ भी नहीं होता। इसलिए हे मानव तू अपनी भावनाओं में से स्वार्थ को त्याग कर। निश्चित रूप से वहीं पर परमेश्वर का निवास होता है।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर