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भीड़ भारी थी, उत्सव भी अपना था

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भीड़ भारी थी, उत्सव भी अपना था

सबगुरु न्यूज। भारी भीड़ के साथ अपना उत्सव मनाया जा रहा था। कोई यह नहीं पूछ रहा था कि यह उत्सव किसका है, इस उत्सव का कौन देव है। सब यह जानते थे, यह उत्सव अपना है तथा एक देव रूपी मानव को उत्सव का प्रमुख बनाया जाना है। इस देव रूपी मानव की ना जाति थी न ही कोई धर्म था न ही लिंग भाषा या अन्य किसी भी प्रकार की कोई विशेषता थी।

आस्था और विश्वास का बहुत बड़ा तबका ही अपनी रूचि के अनुसार इस उत्सव का देव स्थापित कर रहा था जो सभी के जीवन के हर उत्सवों की व्यव्स्था का एक कुशल प्रबन्ध कर सके साथ ही हर उत्सव का आनंद सभी ले सकें। इसी कारण यह भारी भीड़ थीं और अपना उत्सव सभी आनंद से मना रहे थे।

इस भारी भीड़ में उत्सव का देव स्थापित कराने के लिए अलग अलग मंडप सजे हुए थे जो अपनी आस्था के मानव को ही इस महाउत्सव का देव बनवाना चाहते थे। यह मंडप अपने मानव को उत्सव प्रमुख बनाने के लिए लगातार गुणगान कर रहे थे। हर प्रकार से भीड़ को अपनी ओर ही आकर्षित करने में लगे हुए थे।

इतना ही नहीं बल्कि इन मंडपों में आपस में द्वन्द्व होने के फलस्वरूप यह मंडप एक दूसरे के विरोध में भी खडे थे और एक दूसरे के मानव प्रमुखों की खिलाफत कर उनकी हर कमजोरियों का चित्रण भी खूब कर रहे थे। यहां तक तो यह उत्सव ठीक था, सभी मर्यादा के दायरे में रह कर स्वस्थ प्रतियोगिता का परिचय दे रहे थे और यह मानव प्रमुख भी कुछ समय के लिए होते थे। दोबारा प्रमुख बनने के लिए भी यह स्वतंत्र थे।

समय की करवट बदलने लगी ओर कुछ स्वतंत्र शक्तियों ने इन उत्सवों का रूख़ अपनी ओर करने का प्रयास कर स्वयं इन मंडपो में जा घुसे तथा उत्सव प्रमुख अपनी पसंद का थोपने की कोशिश कर उत्सव के माहौल को दूषित करते रहे। भीड का रूख़ बदलने की यह भरसक कोशिश करते रहे। पूरी तरह से हर बार ये अपनी योजना में सफल नहीं हो पाए तथा अपना उत्सव हर स्थिति, परिस्थितियों को पार करता हुआ अपनी ही पसंद का उत्सव प्रमुख स्थापित करता रहा।

संत जन कहते हैं कि हे मानव इस उत्सव में भाग ले और अपनी भागीदारी से उत्सव प्रमुख स्थापित करने में योगदान दे। भारी भीड़ जिसे भी उत्सव प्रमुख स्वीकार करे वही हर उत्सवों का प्रबन्धन करता है तथा हर भागीदार के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाता है।

इसलिए हे मानव, तू किसी भी हस्तक्षेप से प्रभावित ना हो, चाहे वह आर्थिक शक्ति हो या फिर चाहे कोई भी शक्ति। क्योंकि ये अपने स्वार्थ के लिए तुझे गुमराह कर तेरी पंसद को प्रभावित कर देगी। इसलिए तू खुले मन और अपनी सोच से अपने उत्सव में भाग ले तथा अपनी पसंद का उत्सव प्रमुख स्थापित कर।

सौजन्य : भंवरलाल ज्योतिषाचार्य, जोगणियाधाम पुष्कर