सबगुरु न्यूज। किसी के घर में घुस कर कुछ लोगों ने उपद्रव मचाया और उन्हें मारा तथा उस घर का सोना ले गए। दूसरे ही दिन एक चील उन लोगों के घर में पहुंची ओर कुछ सोना सबके सामने से चोच में डालकर उठा ले गई। कुछ दिनों बाद उस चील ने वो सोना वापस उन लोगों के घर में पटक दिया।
यह सब कुछ देखकर एक बाज ने कहा कि बहना तुम ऐसा क्यों कर रही हो। चील बोली भैया यह सोना नहीं है केवल लोहे पर सुनहरी पोलिस चढी हुई है। कारण मेरे बच्चो की आंखे इस सोने को देख कर भी नहीं खुली। लोहा अपनी बर्बादी पर आंसू बहा रहा था कि हे पारस पत्थर ये खोट तुझ में ही थी कि तू मुझे लोहे से सोना नहीं बना सका ओर केवल पालिस चढ़ाकर ही सोने जैसा बना दिया। काश! मेरी भी उत्पति खान से हुई होती।
लोहा कहने लगा कि पारस पत्थर ये तेरे गुणों में ही खोट है कि तू अपनी महिमा बढाने के लिए मुझे सोना बनाने का खेल खेल रहा है। वरना ये दुनिया गरीब ना होती और लोहा फिर सोना ही बन जाता। दुनिया का किसी भी क्षेत्र का युद्ध सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक, वैज्ञानिक या कोई भी क्यों ना हो, वो बिना मेरी शक्ति बल से नहीं हो सकता फिर भी मेरी ही प्रधानता पर क्यों कोई सुनहरी पालिस चढ़ाकर मेरा हमदर्द बना हुआ है। मुझे धातुओं का राजा केवल सुनहरी पालिस चढ़ाकर बनाने में लगा हुआ है और कसौटी पर घिसने से वो मुझे लोहा ही साबित करने में लगा हुआ है।
मानव पारस पत्थर सोना और लोहा यह सब केवल गुणों की ही एक तस्वीर है और समाज का चित्रण करती है कि पारस पत्थर के गुणों को समदर्शी बताया है और यह गुण मानवीय मनोवृत्तियो में नहीं होता है और आदर्श व्याख्या है कि कोई किसी को समान दृष्टि से देखता है व्यवहार में ऐसा मनोवृत्तियों के कारण नहीं होता है।
सोना मूल्यवान बनकर व्यवहार को जकड़ लेता है और वहां मन कई विषमताओं को पैदा करके समाज का बंटवारा कर देता है तथा अपना स्थान अग्रणी रखता है। लोहा शक्तिशाली होने के बाद भी मूल्य में कमजोर रहता है लेकिन वह पूरी तरफ़ फैला रहता है और सभी के काम में आता रहता है।
जमीनी स्तर पर पारस पत्थर मिलता नहीं फिर भी वह आदर्शवाद के रूप में सोना और लोहे में भेद नहीं रखता। इस कारण लोहे को आदर्शवाद की पोलिस लगाकर ही उसे सोने की उपाधि दे दी जाती है लेकिन व्यवहार में सोना और लोहे अलग अलग होकर सामाजिक मूल्यों में अन्तर कर समाज को अलग अलग कर देते हैं।
संत जन कहतें है कि हे मानव, पारस पत्थर तो आकाश के तारों की आदर्श है जिस छूना संभव नहीं होता है और व्यवहार मे लोहा चाहे राज दरबार में रखा हो या शमशान घाट पर वह लोहा ही कहा जाता है चाहे इन पर सोने की पालिस लगा दी जाए। इसलिए हे मानव, तू सदा अपनी मौलिकता बनाए रख और आदर्शवादी पारस पत्थर से लोहे को सोना बनाने की कवायद मत कर।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर