सबगुरु न्यूज। किस पत्थर से मेरा भाग्य बदल जाएगा और किस पत्थर से मुझे चमत्कार मिला जाएगा, कौन से पत्थर से कौन-सा स्वार्थ सधे और किस पत्थर को कब काम में लिया जाए। बस यह मन इसी उडेधबुन में भटकता रहा। उधेडबुन के मायाजाल ने कोई फैसला ना होने दिया। धूल तो मेरे ही चश्मो पर थी और मैं बार अलग अलग पत्थरों को ही आजमाता रहा। कभी कोई पत्थर मुझे आस बंधा गया तो कभी कोई पत्थर निराशा दे गया।
एक दिन पत्थरों की बस्ती से मैं निकला तो सब पत्थर मानो मुझे देखकर खामोश से हो गए और हर पत्थर मुझे कहने की कोशिश कर रहा है कि हे मानव तू हमारे खयालत में यूं ही भटक रहा है और अपने कारज साधने में लगा हुआ है। अरे हम तो जैसे थे वैसे ही हैं लेकिन तुम अपने मन के अनुसार मुझे कभी क्या नाम दे रहे हो कभी क्या। श्रृंगार करवा रहे हो और कभी आस्था तो कभी मेरी उपेक्षा कर रहे हो।
जिसने भी मुझे अपने जिस जिस चश्मे से देखा उसने वैसा ही मेरे बारे में बखान कर डाला और कहीं मुझे भगवान तो कहीं शैतान बना डाला। ना तो मैं भगवान था और ना ही मैं शैतान था। ना ही मैं भक्त बनाता हूं और ना ही ग़ुलाम। ना ही मैं अन्नदाता हूं। मैं तो एक पत्थर ही था जो तुम्हारी मायाजाल में फंसा हुआ हूं। मेरे बहाने तुम अपना ही स्वार्थ साधते हो और मिल बैठ कर अच्छी और बुरी योजना बनाते हो।
मैं बैबस हो कर तुम्हारे हर खेल को देखता रहा कि तुम अपने हितों के लिए किसी को बनाने में लगे हो व किस को उजाडने में लगे हो। कहीं भीड़ से मैं घिरा हुआ था तो कहीं पर चन्द लोगों की भावनाओं में खोया हुआ था फिर भी में सभी जगह पर केवल पत्थर ही था जिसे आस्था, श्रद्धा छोटे बडे का नाम दे रही थी और मुझ में अंतर कर रही थी।
कोई छप्पन भोग अर्पण कर मुझे नवाज रहा था तो कोई एक केवल अपनी भावनाओं से सच्ची लौ लगा रहा था पर मुझे कोई फर्क नहीं पड रहा था कि मेरे लिए कोई क्या कर रहा है। मेरे कुछ रूप को वे बलवान तो कुछ रूपों को कमजोर जैसा तथा सांत्वना पुरस्कार जैसा ही मान रहा हैं। मैं तो केवल पत्थर ही था और भावनाएं मुझ से भेद करवा रही थी।
संत जन कहते हैं कि हे मानव, भटकता हुआ मन अपने कारज साधने के लिए भक्त नहीं होते हुए भी भक्त और ग़ुलाम बन जाता है। सच्चाई को ठेंगा दिखाते हुए झूठ के झंडे उठाने के शंखनाद करता है। आस्था और श्रद्धा बिना कारज साधे ही सदाबहार भक्त बना देती है। यह सत्य को ही देव अपनी भावनाओं में बना देती है।
इसलिए हे मानव तू लाभ और हानि को दरकिनार कर तथा मन के भटकाव को रोक। रास्ते का एक पत्थर भी तेरे लिए मील का पत्थर साबित हो जाएगा।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर