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ग्रीष्म ऋतु में तपने लगा वैशाख, जल और छाया दान मास

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ग्रीष्म ऋतु में तपने लगा वैशाख, जल और छाया दान मास

सबगुरु न्यूज। सूर्य अपने उच्च स्थान मेष तारामंडल के सामने से गुजर रहा है और ग्रीष्म ऋतु को प्रारम्भ कर चुका है। 20 अप्रेल को सूर्य की सायन संक्रांति वृष शुरू हो चुकी है और उसी के साथ ग्रीष्म ऋतु प्रारंभ हो चुकी है। जबकि निरयन मत में सूर्य 15 मई 2109 को वृष राशि में प्रवेश कर वृष संक्रांति शुरू करेगा।

मेष और वृष राशि में सूर्य अपनी प्रचंड गर्मी का असर डाल कर पृथ्वी को तपाने लग जाता है और जल स्त्रोत सूखने लग जाते हैं। भीष्म गर्मी से प्राणी जन त्राहि त्राहि करने लग जाते हैं। शरीर में भी पानी की कमी होने लग जाती है और गर्म हवाओं के तूफ़ान और हवाएं प्राणी जन को मृत्यु तुल्य कष्ट देने पर ऊतारू हो जातीं हैं।

इस काल में वैशाख मास भी चल रहा होता है और वह इसी कारण पवित्र और पावन मास जलदान छतरी दान और छाया दान हेतू माना जाता है। सर्वत्र जल की कमी होने के कारण जगह-जगह पर जल की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि मनुष्य ही नहीं वरन् पशु पक्षी जीव जंतु अपने प्राणों की रक्षा कर सके तथा उसी प्रकार रास्तों में भी छाया के स्थान बनाए जाने चाहिए ताकि राहगीर प्रचंड गर्मी से राहत प्राप्त कर सके।

ग्रीष्म ऋतु यह संदेश देती है कि हे प्राणी तू डर मत क्योंकि वर्ष भर की जलराशि बनाने का काम मैं ही करतीं हूं अन्यथा हर ऋतु फिर रोग ग्रस्त ही रह जाएगी और अपने गुण धर्म बदल कर वह लाभप्रद नहीं बन पाएगी। मैं ही पानी को सुखा कर बादलों में जल के गर्भ से परिपूर्ण करतीं हूं तथा समस्त ऋतु से ऐठे हुए शरीर को मैं ही गर्म कर सारी ऐंठन दूर कर देती हूं। मेरी प्रचंडता ही ऋतु चक्र को संतुलित रखने का कार्य करती है। इसलिए तू अपने शरीर में पानी की कमी मत रख ओर पेट को भी भूख से बचा, नहीं तो मेरी गर्मी से बीमार हो जाएगा।

संत जन कहते हैं कि मानव ग्रीष्म ऋतु में शरीर पर आत्मा की राजनीति भारी पड़ती है और वह शरीर को कहती है कि तुम बचना चाहते हो तो मेरा समर्थन करो अन्यथा मेरी हार तुम्हें मिट्टी में मिला देगी और मौत का साम्राज्य छा जाएगा। मुझे सुरक्षित रखो तब ही तुम भी सुरक्षित रह सकते हो। मन फिर भी उधेडबुन में लगा रहता है और शरीर को अपने स्वार्थो के लिए भटकाता रहता है।

इसलिए हे मानव, तू आत्मा और मन की राजनीति में मत पड तथा ग्रीष्म ऋतु की इस तपन से बच तथा दूसरों को भी बचाने के हर संभव प्रयास कर। पीने के पानी छाया और ऊर्जा दायक अल्पाहार की व्यवस्था यथा संभव कर साथ ही उन जीवों की भी रक्षा कर जो इस गर्मी से परेशान हैं और पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणिया धाम पुष्कर